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________________ १६० प्राचीन जैनलेखसंग्रहे (3) राज श्रीकान्हडदेवे सु (4) तु राज श्रीवीसलदेव स (5) वाडीवाट दातव्या (6) ग्रामं ......ष्टिप्रदोश ने (7) वापढे शासनं प्रद (8) त्तः ॥ बहुभिर्वसुधा (9) अक्ता राजभिः सग - (10) रादिभिः यश यश (11) जड़ा भूमि तशत( 12 ) श तदा फलं | ( ? ) -27-23 आरासणतीर्थंगतलेखाः । ( २७७ ) संवत् १६७५ वर्षे मात्रमुदि चतुथ्यों शनी श्री ओोकेश ज्ञातीय वृद्धसज्जनीय श्रीनेमिनाथचेत्ये श्रीनेमिनाथवित्रकारितं प्रतिष्ठितं सकलक्ष्मापालमंडलाखंडल श्री अकवर प्रदत्त जगद्गुरुविरुदधारिभट्टारक श्रीहीरविजयसूरीश्वर पूर्वीच मार्तंड मंडलायमानभट्टारक श्रीविजयसेनसूरि शर्वरीसार्वभौमपट्टालंकारनीरवीश्वरसौभाग्यभाग्यादिगुणगणरंजितमहातपाविरूद्धारक भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः पंडित श्रीकुशलसागरगणि प्रमुख परिवारसमन्वितः बुदरा राजपा० शुभः सकला भवतीतिशुभम् ॥ . -
SR No.010442
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages592
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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