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________________ । हरिक्शकी बात काटकर सकत fakt रहो ! ब्रमके दर्शन ब्राह्मण ही करता है। जाओ, धर्मानुष्ठानमें विज्ञ , मत डालो।" हरिकेशने शांति और दृढ़तापूर्वक कहा- सच करते हैं माय, बामण ही ब्रह्मके दर्शन कर सक्ता है, पर ब्राह्मण वही मनुष्य है जो निरतर ब्रह्ममें चर्या करता है, जिसकी दृष्टि बाह्य रूप और नाम 'र नहीं अटकी है, बल्कि जो सदैव चिन्मगत परमात्माके ध्यान छीन है वह ब्राह्मण है। परमात्मा पद वर्ण और जातिसे रहित है, इस कथाको तुमने क्या नहीं सुना है ?" सब बोले-'कौनसी कथा ? चल हट, हमें फुरसत नहीं है । कथा कहनेकी।" हरिकेश बोले-अच्छा भाई ! मत कहो कथा । पर सुनो तो । सही। क्या वैदिक जग में यह प्रसिद्ध नहीं है ! देखो एक भक्त शिवजीकी उपासना करने चला और उसने स्तुति बन्दना करके यह प्रार्थना की कि मैं खूब धनवान होऊं और नैवेद्य चढ़ा दिया। 'फिर भी असंतोषी हो वह शिवप्रतिमाकी ओर ताकता रहा । शिवसीको उसका यह असंतोष बहुत अखरा। उन्होंने उसे शिक्षा देने की ठान ली । भक्तने देखा, शिवजी के सामने उसका चढ़ाया हुना मैवेद्य नहीं है। उसे अचम्भा हुआ। उसने फिा नैवेद्य चढ़ाया और एक ओर हटकर देखने लगा कि उसे कौन लेता है। इसमेटे एक पुलिन्द-म्लेच्छ धनुष-बाण लिए भाया और नैवेष हटाकर उसने भक्तिभाक्से अपने फल फूल चढ़ा दिये । शिवजी उस पुकिबकी निष्काम भकिसे प्रसन होकर उससे सामान हो बातें करने
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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