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________________ एक जैन । TASƏTLİ ONUNDA C दान देना और दान लेना, ये छह कर्म हैं। शेष क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र - इन तीन वर्णोंके पूजन करना, पढ़ना और दान देना; ये तीन कर्म हैं ?' 'भावसंग्रह' पूजासार आदि अनेक प्रन्थोंमें शोंके • .2 २७१ इन अधिकारोंका उल्लेख है। प्रत्युत 'सारत्रय' के टीकाकार श्री जमसेनाचार्य तो सच्छूद्रको मुनि दीक्षाका भी अधिकारी बतलाते हैं।" श्वेतांबरीय शास्त्रों में चाण्डाल और म्लेच्छों तकको मुनि होने देनेका विधान है । दिगम्बर शास्त्र भी म्लेच्छों की कुल शुद्धि करके उन्हें अपने में सिहा लेने तथा मुनिदीक्षा आदिके द्वारा ऊपर उठानेकी आज्ञा देते हैं । महान सिद्धात ग्रंथ जमधनल " में यह उल्लेख निम्नप्रकार है.. (6 66 जड़ एवं कुदो तत्थ संजमग्गणसंभवोति णा संकणिज्जं । दिसा विजयपयद्धचक्क वट्टिसंधावारेण सह मज्झिमखण्डमागयाणं मिलेचयाणं तत्थ चक्षट्टि आदिहिं सह जादवेा हियसम्बन्धाणं संजमपडिबत्तीए विरोहाभावादो || अहवा तत्तत्कन्यकानां चक्रवर्त्यादि परिणीतानां गर्भेषूत्पन्ना मातृपक्षापेक्षया स्वयमकर्मभूमिजा इलीह बिबक्षिता ततो न किंचिद्विप्रतिषिद्धं । तथाजातीयकानां दीक्षाई प्रतिषेघाभावादिति !" - जयधवल, आराकी प्रति पृ० ८२७ -८२८ । १ - [भावसंमडू (.......... ) पूजासार (हो० १७-१८) २ - ' एवं गुणविशिष्टपुरुषो जिनदीक्षाग्रहणयोग्यो भवति । यथायोग्यं सच्छूद्राद्यपि ' - प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, पृ० ३०५ । ३- 'सक्व खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसह जाइ विसेसकोई । सोवागपुत इरिएससाई जस्सेरिसा इडि महाणुभाषा ॥ १२॥ -उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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