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________________ ११ । ( दमक । चैनसर्ग अर्थात्-" दूसरों पर सत् अनुग्रह करना ही पर-स्थितिकरण - " | ब्रह अनुग्रह यही है कि जो अपने पदसे भ्रष्ट हो चुके हैं, बन्हें उसी पदमें फिर स्थापित कर देना।' इस विषय श्री सोमदेवाला विन उपदेश खास ध्यान देने योग्य है :नबैः संदिग्धनिर्वाहैर्विदध्याद् गणवर्धनम् । एकदोषको त्यान्यः सत्यः कथं नमः ॥ यहः समग्रकार्यार्थी नानापंचजनाश्रयः । अतः संबोध्य यो यत्र योग्यस्तं तत्र योजयेत् ॥ उपेक्षायां तु जावेत तत्वाद दूरतसे नरः । तवस्तस्य भवो दीर्घः समयोऽपि च हीयते ॥' अर्थात्-" ऐसे ऐसे नवीन मनुष्योंसे अपनी जातिकी समूह वृद्धि करनी चाहिये जो संदिग्ध निर्वाह है-यानी जिनके विषयमे यह सन्देह है कि वे जातिके आचार विचारका यथेष्ठ पालन कर सकेंगे । ( और जब यह बात है तब ) किसी एक दोषके कारण कोई नर जातिसे बहिष्कार के योग्य कैसे होसकता है ? चूंकि जैन सिद्धान्ताचार विषयक धर्मकार्योका प्रयोजन नाना पंचजनोंके आश्रित -उनके सहयोग से सिद्ध होता है । अत. समझाकर जो जिस कामके योग्य हो उसको उसमें लगाना चाहिये - जातिसे पृथक् न करना चाहिये । यदि किसी दोषके कारण एक व्यक्तिकी उपेक्षा को जाती है-उसे जातिमें रखनेकी परवाह न करके जातिसे पृथक किया जाता है, तो उस अपेक्षा से वह मनुष्य तत्वके बहुत दूर जापड़ता है। वलसे दूर उड़ने का संसार बढ़ जाता है और
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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