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________________ 100ROHSHRIDUONSIBILO .. SHRIDASIDHI वेमना। [ १८९ घूमने लगे। तनपर एक कपड़ा भी नहीं रक्खा। कौपीन तक छोड़कर वह नग्न दिगम्बर होगये! प्रकृतिके होकर वह प्रकृतिका रहस्य समझने के लिये तल्लीन होगये। जो जन्मका शुद्र और जिसने वेश्याके प्रेममें डूबकर दिन बिताये थे, वह कपड़ा भी छोड़कर नंगे बदन जंगलमें घूमे ! कितना परिवर्तन और कितना त्याग !! गुणोंकी आसक्ति और उपासना मनुष्यमें कायापलट कर देती है ! वेमबाकी त्यागशक्ति और ज्ञानको देखकर बहुतसे लोग इनके शिष्य होगये। अपने शिष्योंको उन्होंने ये सात नियम बतलाये थे.-- (१) चोरी नहीं करना, (२) सब पाणियोंपर दया करना, (३) जो कुछ है उसीसे संतुष्ट होना, (४) किसीका दिल न दुखाना, (५) दूसरोंको न छेड़ना, (६) क्रोध छोड़ना, (७) हमेशा परमास्माकी आराधना करना। ___आत्मधर्मकी प्राप्तिके लिये निस्सन्देह उक्त नियम साधक हैं। वेमना प्रायः हमेशा मौन रहते थे, न किसीसे बोलते भौर न किसीसे भिक्षा मागते। जब भूख लगती तब किसी पेड़के पत्ते या फल तोड़कर खालेते । राहमें जाते समय जब शिष्यगण भिन्न भिन्न विषयों पर बहुतसे प्रश्न पूछते तब वह उन सबके उत्तर पद्यमें देते थे। इस समय उनके ५००० पद्य मिलते है । वह पद्य आकारमें छोटे, परन्तु भावों में समुद्रके समान गंभीर हैं । वेमनाके योगने उन्हें एक उच्च कवि भी बना दिया! धर्मका प्रचार और योगाभ्यास करते हुए मन्तः ६८ वर्षकी मायुमें वेमनाने सन् १४८०ई० की चैत्र शुक्ला नवमीके दिन
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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