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________________ Anuuuun mumbu on.INuuuuuuu... ११४] पतितोदारक मैनधर्म । तो मालूम हुआ अन्दरसे बन्द है। रानीने घबड़ाकर कहा-" भैया कार्तिक !" __इसके उत्तरमें भीतर से आवाज आई-" माईसे क्या कहती हो, मां ?" और इसके साथ ही कुमार रानीके सामने आ खड़ा हुआ । रानी हड़बड़ा गई ! कुछ संमले संभले कि कुमारने फिर कहा-' मा ! मैं तुम्हारा भाई ई ? ' रानीका माथा ठनका, उसने कहा- इसका मतलब !' ___ 'मतलब यह कि हमारे तुम्हारे पिता एक हैं।' कुमारके इन वचनोंको रानी सहन न कर सकी, उसे चक्कर आगया, वह बेहोश होगई । लोगोंके उपचार करनेपर उसे होश आया तो वह कुमाग्मे लिपटकर रोने लगी। दास-दासी, मा-बटको अकेला छोड़कर हट गए, दोनों पेट भरकर रोये । अब रानीकी छाती जरा हल्की हुई थी, उसने कार्तिकेयके आसू पूंछने हुये कहा- बेटा, भूल जाओ इस पापको ! मुझ अभागिनीको और मत मताओ। कार्तिस्यने कहा मा । मैं तुम्हें में भी दरवी नहीं दस्व सक्ता, किन्तु फिर भी मै या नहीं होगा।' गनी- 'बेटा ' मुझ ओलीको छोडकर कहा जाअंगे ? यहा जन्हें कोई भी कष्ट नहीं होने दूंगी।' कानिय - 'मा, कष्ट ! अन्याय औ• अयमके गडय सुन्व ??? जहा मानु नाति ।। कुछ य न हो. महिला को को अपने मुग्वदुःख की 17 कहने नकी ताना न १ वहा सुम्ब कैमा ।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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