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________________ ९७ ] पतितोद्धारक जैमथ 11amila candan [ ४ ] धर्मात्मा शूद्रा ( १ ) उज्जन के उद्यानमें तपोधन निर्ग्रन्थाचार्य संघ सहित आकर बिराजे थे । वे महान योगी और ज्ञानी थे। उज्जैनकी भक्तवत्सल जनताने जब उनका शुभागमन सुना तो उसने अपने भाग्यको सराहा । स्त्री-पुरुषों, बालक-बालिकाओं और युवा वृद्धोंने उनकी सत्संगतिमे लाभ उठानेका यह अच्छा अमर पाया। स्वाति नक्षत्रका जल चातक को हर समय नहीं मिलता । योगियोंका समागम भी सुलभ नहीं होता । बनमें रहने से कोई योगी हो भी नहीं जाता । कामिनी कंचनका मोहत्याग कर जो इन्द्रियोंको दमन करने में सफल होकर जीवमात्रका कल्याण करनेके भी तलर होता है, वह सच्चा साधु संसार दुर्लभ है। उज्जैनकी विवेकी जनताने निर्ग्रन्थाचार्य में एक सच्चे साधुके दर्शन किये, उसने अपनेको कृतकृत्य माना । उज्जैन के राजा राव उमराव, धर्मी व्यापारी, सामान्य- विशेष सब ही निर्यथाचार्यका धर्मोपदेश सुनने गये। सब ही एकटक होकर धर्मोपदेश सुनने लगे । आचार्य महाराज बोले- भव्यो ! मानवजन्मका पाना महान पुण्यका फल है। समुद्र मेसे राईके दानेको ढूंढ निकालना कदाचित् सुगम होसक्ता है परन्तु मनुष्य होना खतना सुगम नहीं है । ऐसे अमूल्य जीवनको पाकर व्यर्थ ही आयु पूरी कर देना- सुखसे म्वानेपीने और मौज उड़ाने में ही अपने 1 * 'गौ चरित्र' में मूल कथा है । कन्यायें । *
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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