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________________ मुनि भगदत्त । [ २ ] मुनि भगदत्त ! * [ ८५ (१) बनारस में चंद्रवंशी राजा जितारि राज्य करता था । कनकचित्रा उसकी रानी थी । उनके एक पुत्री हुईं। उसका नाम उन्होंने मुंडिका रक्खा | मुंडिकाको मिट्टी स्वानेकी बुरी आदत पड गई थी; जिसके कारण वह सदा बीमार रहती थी । मुंडिका स्थानी होगई थी। एक रोज वह वायु सेवनके लिये बाहर बगीचे में गई । वहा उसकी भेंट वृषभश्री नामक जैन स्वाध्वी होगई | वृषभश्रीने उसे धर्मका स्वरूप समझाया और वह जैनी होगई । उसने अभक्ष्य वस्तुओंको भक्षण न करनेका नियम ले लिया । व्रत संयमको पालनेसे उसका जीवन स्वस्थ्य होगया । वह अव एक अनुपम सुन्दरी थी । राजाने मुंडिकाको विवाह योग्य देखकर उसका स्वयंवर रचा । दूर दूरसे राजा महाराजा आये । मुंडिकाने सबको देखा, परन्तु उनमें उसे कोई भी पसंद नहीं आया । उसने किसीके गलेमें भी बरमाला नहीं डाली । बेचारे सब ही अपने २ देशको निराश होकर लौट गये। मुंडिका धर्मसेवन करती हुई जीवन विताने लगी । ( २ ) तुंड देशका राजा भगदत्त था । श्री । राजा मगदत्तका जैसा बड़ा चक्रकोट उसकी राजधानी चढ़ा वैभव था, वैसा ही वह २ पर मूळ कथा दी हुई है। x 'सम्यक्त्व कौमुदी' पृ०
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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