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________________ १४४ पार्श्वनाथ Annann01. A nnnn r onavranrnamme nnnnnnnn अपर्व विजय उस समय वाराणसी के पश्चिम मे कुशस्थल नाम का एक विशाल और समृद्ध नगर था । वहा के राजा का नाम प्रसेनजित था। राजा प्रसनजित की एक सुन्दरी कन्या थी । उसका नाम प्रभावती था । प्रसेनजित ने प्रभावती की सम्मति के अनुसार पाकुमार से उसका विवाह सम्बन्ध करने का निश्चय किया। यह समाचार कलिंग के राजा ने सुना। प्रभावती के सौन्दर्य पर अनरत्त होकर उसने अपनी विशाल सेना के साथ कुशस्थल पर चढ़ाई कर दी। कुशस्थल के चारों ओर उसने घेरा डाल दिया और अपने शूरवीर योद्वाओं को स्थान-स्थान पर नियुक्त कर दिया । कलिगराज ने प्रसेनजित को सूचित कर दिया कि या तो कुमारी प्रभावती को मेरे सुपुर्द करो या रणस्थल मे आकर सामना करो। प्रसेनजित इस अचिन्त्य आक्रमण का सामना करने की तैयारी न कर सके । विवश हो प्रसेनजित ने अपने मंत्री के पुत्र को एक गुप्त मार्ग से बनारस भेजा । उसके जाने की कलिंगराज के गुप्तचरों को जरा भी खबर न होने पाई। अमात्य पुत्र बनारम जा पहुंचा और कलिंगराज के सहसा आक्रमण का विस्तत वर्णन सुनाया। महाराज अश्वसेन ने समस्त वतान्त सुना तो उनकी भ्रकुटी चढ गई । वीर रस की लालिमा उनके नेत्रों में चमक उठी। बोले-'कलिंगराज की यह धृष्टता । उसके होश बहुत शीघ्र ठिकाने लाता है। मंत्री-पुत्र ! आप निश्चिन्त रहे । कुशस्थल का शीघ्र ही उद्वार होगा। इस प्रकार उसे सान्त्वना देकर महाराज अश्वसेन ने तत्काल सेनापति को यन्ता र सेना तैयार करने का आदेश दिया ।
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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