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________________ पांचवां जन्म mannannaan naman anginan amananamrammmmmmnama हुए समता भाव स्थिर रक्खा। अन्त में प्राणीमात्र से हर्दिक क्षमाप्रार्थना की और समता भाव में ही देह त्याग दिया। पाँचवां जन्म देहावसान के अनन्तर वे बारहवे देवलोक मे २२ सागरोपम ___ की आयु के धारक देव हुए। मरुभूति का जीव जब हाथी के भव मे था तब कमठ का जीव सर्प हुआ था। मरुभूति का हाथी पर्याय वाला जीव सहस्रार स्वर्ग में १७ सागरोपम की आयुवाला देव हुआ और वहां से च्युत होकर करणवेग हुआ। इसके बाद फिर सर्प ने उसे काटा और वह अब की बार बारहवे देवलोक मे देव हुआ । इस वत्तान्त से पाठकों को यह संशय हो सकता है कि सर्प तव तक क्या सर्प ही बना रहा ? सर्पकी आय इतनी नही होती है फिर उसने मुनि करणवेग को कैसे काटा ? इसका समाधान यह है कि पहला _कुर्कट जाति का सर्प मर कर पांचवें नरक मे उत्पन्न हुआ था, __ यह पहले कहा जा चुका है, पांचवें नरक की स्थिति भी सत्तरह सागर की है अतः सहस्रार स्वर्ग की सत्तरह सागर की आय भोगकर हाथी का जीव जब करणवेग हुआ लगभग उसी समय पांचवे नरक की सत्तरह सागर की आयु समाप्त कर कमठ का जीव फिर दूसरी बार उसी जगह और उसी जाति का विला सर्प हुआ। अतः यह न समझना चाहिए कि सर्प एक ही पर्याय मे इतने समय तक बना रहा। कुर्कट सर्प अव की वार मर कर छठे नरक मे गया। नरक की वेदनाओं के विषय मे पहले किञ्चित् दिग्दर्शन कराया गया
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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