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________________ पाश्वनाथ प्रभाव से अंटसंट वक रहे थे तब आपका पल्ला मैंने इसलिए पकड़ा था कि क्रोध-चांडाल मेरा पति है। मै चांडालिन हूँ। अपने पति-चांडाल को आपके हृदय में बैठा देख आपका पल्ला पकड़ा । लेकिन जब मैने देखा कि चाडाल आपके हृदय मे से निकल भागा है तब उसी दम आपका पल्ला छोड़ दिया है। __ तात्पर्य यह है कि क्रोध के वश मे हुआ मनुष्य चांडाल से भी बदतर हो जाता है । कमठ ने तापसी दीक्षा धारण की, वह धनी रमा कर काय क्लेश करने लगा पर क्रोध चाण्डाल उसस दूर न हुआ । वह अपनी कलंकित करतूतों से लज्जित होने के बदले और उनका यथोचित प्रायश्चित करके भविष्य मे आत्मा को उज्ज्वल बनाने के बदले मरुभूति, अपने अनुज को मार डालने की घात में बैठा है। मृदुल-हृदय मरुभूति ने कमठ के तापस होने का समाचार सुना तो उसका स्नेह-सिक्त अन्तःकरण बन्धप्रेम से आद्रे हा उठा । उसके नेत्रों से प्रेम के आंसू बहने लगे। वह . भाई से मिलने के लिए उत्कंठित हो उठा । एक दिन वह भाई से मिलने के निमित्त अपने घर से विदा हुआ और खोजते खोजत कमठ तापस के समीप जा पहुंचा। बड़े भाई पर दृष्टि पड़ते हा वह हर्प के मारे गद्गद हो गया। उसका हृदय एकदम निश्छल और सरल था। उसे नहीं मालूम था कि कमठ अपने अपमान का एक मात्र कारण उसे ही समझ कर उसके प्राणो का ग्राहक वना बैठा है। उसने पास मे पहुँच कर कमठ को प्रणाम करने और नमा-प्रार्थना करने के लिए चरणों मे मस्तक नमाया । इधर मरुभूति पर नज़र गिरते ही कमठ का क्रोध और अधिक
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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