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________________ पार्श्वनाथ AAVA कमठ को पकड़ कर राजा के सामने उपस्थित किया। उसके मुंह पर कालिख पुतवाई गई। फिर गधे पर चढ़ा कर नगर के प्रधान २ बाजार में घुमा कर देश से उसे निर्वासित कर दिया। जिसने इस घटना को देखा उसी के कान खड़े हो गये और कहने लगे-देखो, परस्त्री सेवी की ऐसी दुर्गति होती है। ___ कमठ अपने घोर अपमान से आग बवला होगया। वह अपने पाप कर्म पर रुष्ट न हो कर मरुभूति पर दांत पीसने लगा। उसने सोचा दुष्ट, तू ने ही मेरी यह दुर्दशा कराई है। अवसर मिलने पर इस तिरस्कार का प्रतिशोध तेरे प्राण लेकर करूँगा ।' कमठ इस प्रकार विचार करता हुआ बहुत दिनों तक इधर-उधर भटकता रहा । अन्त मे कोई ठौर ठिकाना न देख उसने शिव नामक एक तापस के पास तापसी दीक्षा धारण कर ली और दिन-रात धनी धधका कर अज्ञान-तप करता हुआ अपने दिन व्यतीत करने लगा। इधर कमठ बाहर धूनी धधकाए रहता था, उधर उसके अन्तःकरण मे भी क्रोध की धूनी धधक रही थी। वस्तुतः क्रोध अंधा होता है । क्रोध जब भड़कता है तो वह क्रोधी को विवेकशन्य बनाकर उसे पतन की ओर ले चलता है। क्रोध अनेक अनर्थों का मूल है। क्रोध के वश मे पड़ा हुआ प्राणी क्या-क्या अनर्थ नही कर डालता ? क्रोध की ही बदौलत कोई कूप मे गिर कर आत्महत्या करते है, कोई विष भक्षण कर अपने प्राणों का अन्त कर डालते हैं। कोई आत्मीय जनो का या दूसरों के जीवन का अपहरण करते और दुर्गति के पात्र बनते है । क्रोधी मनष्य चाण्डाल से भी निकृष्ट बन जाता है। -डाल रसोई में प्रवेश कर जाय तो उस समय का भोजन अ
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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