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________________ १६ पाश्वनाथ ANA में इतना सामर्थ्य हो सकता है ? देव को पराजित कर देने वाला मनुष्य भी क्या इस भमि पर होना संभव है ? ऐसा न हो तो क्या कारण है कि यह योगी पर्वत की भॉति उन्नत भाल किये खड़ा है । इतनी वेदनाओं का इस पर अणु वरावर भी प्रभाव नहीं पड़ा। देख, एक बार और प्रयास करूं। इस प्रकार विचार कर उसने भगवान् को पानी मे वहा देने का विचार किया। वह मेघमाली तो था ही, आकाश सजल मेघों से मढ़ गया। विजली गड़गडाने लगी। मूसलधार वर्षा होने लगी। थोड़ी ही देर मे इधर-उधर चारों ओर पानी-ही-पानी दिखाई देने लगा। जितने जलाशय थे जल से लबालब भर गय । खेत सरोवर बन गये । कूपों के उपर होकर पानी बहने लगा । भगवान के घुटनो तक पानी आ गया । मगर वे अक्म्प थे। थोड़ा समय और व्यतीत हुआ। उनकी कमर पानी मे डब गई। पानी वरसना बन्द न हुआ। ऐसा मालम होने लगा मानों आकाश फट पडा हो । अब भगवान् के वक्षस्थल तक पानी आ पहुंचा था। थोड़ी ही देर बाद उनके मुह तक पानी पहुंच गया। फिर भी भगवान की ध्यान मुद्रा व्यो-की-त्यों अविचल थी। भगवान, मेघमाली देव द्वारा होनेवाले इन भयकर उपसर्गों को सहन कर रहे थे। उनके मन मे प्रतिहिसा का भाव रचमात्र भी उदित नहीं हुआ। वे पूर्ववत् समता रूपी अमृत के सरोवर ने आकएठ निमग्न थे। वैपम्य भाव उनके पन भी न फटकने पाता था। ___ भगवान् के मुस तक पानी आ पहुँचा तव पूर्व परिचित घरगद का व्यामन कॉप उठा ! प्रासन कांपने से उपयोग तगाने पर उसे मालूम हुआ कि मेरे परमोपगारी परम कृपालु भगवान्
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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