SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पार्श्वनाथ १५२ ऐसा सौम्य, पराक्रमी, सुन्दर, गुणवान और आज्ञाकारी पुत्र पाया है। अभी | अभी कुमार विवाह की स्वीकृति नही देते तो न सही, उनके माता-पिता की अनुमति से यह सम्बन्ध करना ठीक होगा । कुछ समय तक प्रसेनजित का आतिथ्य ग्रहण कर पार्श्वकुमार अपनी सेना के साथ बनारस की ओर चल दिये । जब वे अपनी अपूर्व विजय-पताका फहराते हुए बनारस के समीप पहुँचे और महाराज अश्वसेन को समाचार मिला तो नगरी को खूब सजाया गया। नागरिकों ने अत्यन्त उत्साह के साथ अपनेअपने घर-द्वार सिंगारे । जगह-जगह तोरण, पताका और स्वागत द्वारों के कारण सारा शहर ऐसा सुन्दर प्रतीत होता था मानों अलकापुरी हो । प्रतिष्ठित नागरिक और महाराज अश्वसेन बड़े स्नेह और स्वागत समारोह के साथ कुमार को नगरी में लाये । कुरास्थल की राजकुमारी प्रभावती पार्श्व कुमार को हृदय स वरण कर चुकी थी । उसने निश्चय कर लिया कि इस जीवन से यदि मेरा पाणिग्रहण होगा तो पार्श्वकुमार के साथ ही होगा । दुर्भाग्य से ऐसा न हुआ तो मै आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करूंगी। वह अन्तःकरण से अपना तन-मन कुमार को समर्पित कर चुकी थी । जब पारवे ने विवाह करना स्वीकार न किया और कुशस्थल से वे वापिस लौट आये तो राजकुमारी बहुत निराश हुई । उसका हृदय वेदना के प्रवल आघातो से जर्जरित सा होगया । राजकीच वैभव और सखी-सहेलियों का हास्य-विनोद उसके हृदय को सान्त्वना प्रदान न कर सका। वह निरन्तर उदास रहती, न किसी से विशेष वार्त्तालाप करती और न भरपेट भोजन ही करती थी । पार्श्वकुमार का तेजस्वी और सुन्दर
SR No.010436
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGangadevi Jain Delhi
Publication Year1941
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy