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________________ पहला अध्याय । जिसमें तर्क-वितर्कके द्वारा स्याद्वाद कथंचित् मतका मंडन और दूसरे कपोल-कल्पित मिथ्या मतोंका खंडन किया गया हो वह आक्षेपिनी कथा है । इसको कहने या सुननेसे ज्ञानका विकाश होता है । और जिसमें रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ) का निरूपण और मिथ्यात्व आदिका खंडन किया गया हो वह.विक्षेपिनी कथा है । इन गुणोंकी खान कथाके कहने या सुननेसे गुणोंकी वृद्धि होती है। विकथा-खोटी कथा-वह है जो मिथ्यात्वियों-व्यास आदि झूठे लोगोंकी गढ़ी हुई कपोल-कल्पित वातोंसे भरी हुई हो । विकथाके कहने या सुननसे पाप-बंघ और पुण्य क्षीण होता है। - हर एक सत्कथाके आरम्भमें जिन सात अंगोंका होना अतीव उपयोगी और आवश्यक है वे ये है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, तीर्थ, फल और प्रकृत । इसी नियमको लेकर यहाँ सब कुछ लिखा गया है । अव इस पवित्र पुराणका आरम्भ किया जाता है। जम्बूद्वीप एक प्रसिद्ध और सुन्दर द्वीप है । वह सत्पुरुषोंका निवास और सम्पत्तिका खजाना है। उसमें भरत नाम एक पवित्र और मनोहर क्षेत्र है । वह भारती-सरस्वती से विभूपित अतिशय शोभावाला है। इसके छह खंड है । उनमें एक आर्यखंड है । वह धीरवीर और इन्द्र जैसी विभूतिवाले परोपकारी आर्य पुरुपोंका निवास है । वहॉके आर्य पुरुष अभयदान देनेवाले और धर्मात्मा हैं । आर्यखंडमें विदेह नाम एक मनोहर देश है। वह भी सुन्दर और उत्तम गुणोंसे युक्त नर-नारियोंसे विभूपित है । वहॉके नर-नारियोंको किसी भी वातकी कमी नहीं है । वे हमेशा अमन-चैनसे अपना समय विताते हैं । वहाँसे लोग सदा काल विदेह (मुक्त) होते है । वहॉके पुण्य-पुरुप ध्यानामि और कठिन तपस्याके द्वारा कर्म-ईधनको जला कर विदेह-मुक्ति-अवस्थाको प्राप्त हो जाते हैं और जान पड़ता है कि इसी लिए इस देशका नाम विदेह पड़ा है। विदेह देशमें पृथ्वीका भूषण कुंडनपुर नाम एक सुन्दर नगर है। उसमें जो उत्तम उत्तम पुरुप निवास करते हैं उनसे वह ऐसा जान पड़ता है कि मानों वह इन्द्र आदि देवता-गणका निवास स्थान अमरावती ही है । कुंडनपुरके राजा सिद्धार्थ थे। वे नाथवंशी थे। उनके सभी मनोरथ सफल थे-उन्हें किसी भी बातकी कमी न थी। उनकी रानीका नाम त्रिशलादेवी था। वे नदीकी तुलना करती थीं।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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