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________________ पृष्ठ ९ १४ १६ १७ ६१ २४ २५ ३१ ३५ ४२ ५१ ५९ १८ ९ ७० ८७ . १५ १०१ १०१ १०७ १०९ १०९ १०९ ११७ ११५ १२० १२१ १२४ १३६ १३६ १६७ १७३ १८३ १८६ २०० २०१ १०६ पंक्ति १९ ३ १६ १ ३५ २८ ९ २७ ७ 3 6 २६ १९ २९ २१ १४ ४ ९ १३ ११ १३ २० १२ १४ १५ २२ २२ १३ ७ ९ २ २५ १ १६ ܙ ३ १९ ८ १४ कुछ शुशियाँ। अशुद्ध जभिका श्रीं उसे नॉबे करना गये मारसं सभासदों कर सुनीम पैदल ज्वलनटी सुघोष भमवन् ही ये करके द्वारा गणका सौ 1 राजाके सांतनु कामसे दिखा कर कहते उसकी प न तिलोत्तमा मढालाकार है कि तो भक्त लोग शब्दावेधिनी कंस भायाभय पिताका अधे-जले हस्तानापुरका उनके 1 शुद्ध 1 भिका 10 वह तॉयेका कहना हो गये भारसे सभासदनि कह सुनमि पृथिवीमें ज्वलन जटी सुघोष भगवन् ही द्वारा गण सात सौ राजाके पुत्रके सांतनु पुत्र ( वारासर ) ✓ ० नेत्र दिला कर कह उसके' पर न थी ० तिलोतमों मंडलाकार कि भक्त लोग तो शब्दवेधिनी उस मायामय भाईका अष-असे हस्तिनापुरकी उसके
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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