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________________ पल्लीवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसग डॉ नेमेन्द्रचद जैन)मे प्रकाशित कराया गया है । इसमे भी भाचार्य श्री कुन्दकुन्द को पल्लीवाल जाति का होना बताया गया है। इस पट्टावलो की प्रामाणिकता के बारे में प्राचार्य श्री विमल सागर जी का कहना है कि इसे उनके मुरु आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी ने विभिन्न स्थानो के शिलालेखो, अथ प्रशस्तियो तथा प्राचीन पट्टावलियो के आधार पर बनाया था। उनका यह भी कहना है कि वे इस पट्टावली को ही सही मानते है । इसके विपरीत प० नाथूराम जी 'प्रेमी' 'परवार जाति के इतिहास पर कुछ प्रकाश' नामक अपने लेख मे लिखते है कि जिस पट्टावली के आधार पर श्री कुन्दकुन्दाचार्य को पल्लीवाल, उनके गुरु श्री जिनचन्द्र को चौखसे परवार, श्री बज्रनन्दि को गोलापूर्व और श्री लोहाचार्य को लमेचू जात्युत्पन्न माना जाता है, इस पट्टावली को प्रामाणिकता पर सदेह होता है। श्री प्रमी जी के मनुसार उक्त मान्यता चौदहवी शताब्दी से पहले की नहीं है । लेकिन जिन पट्टावलियो का हमने उल्लेख किया है वे प्रेमी जी द्वारा वर्णित पट्टावली मे भिन्न है तथा प्रेमी जी के लेख के बहुत बाद प्रकाश मे पाई हैं। अत हमारो राय मे ये दोनो पट्टावलिया प्रसदिग्ध है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य के सम्बन्ध मे एक अन्य बात जो चर्चा का विषय रही है, वह है उनका जन्म स्थान । कुछ लोगो का मानना है कि प्राचार्य श्री का जन्म कोटा-बू दी के निकट बाराह (बारापुर) नामक स्थान पर हुआ था। जबकि अन्य लोगो की धारणा है कि उनका जन्म स्थान तामिल प्रदेश का कुरुमराई नामक स्थान है। वाराह में उनका जन्म स्थान मानने का कारण है-वहाँ पर स्थित श्री कुन्दकुन्द की छत्री तथा ज्ञान-प्रबोध' मे वर्णिन एक दन्तकथा (37) लेकिन इतना प्रमाण ही काफी नही है। कारण यह है कि सौरीपुर (बटेश्वर) से प्राप्त एक पट्टावलो मे दो अन्य
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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