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________________ पल्लीवाल जैन जाति की उत्पत्ति एव विकास 27 नही खाते। इसका कारण यह है कि इस घटके की जनसख्या बहुत कम थी तथा कुछ गोत्रो के लोगो का समुदाय ही जाति की मुख्य धारा से अलग हुअा था। बाद मे कुछ गोत्र नये भी बने हैं। साथ ही, यह भी हो सकता है कि उस घटक में जो गोत्र आजकल नही हैं, लेकिन पहले थे। बाद मे उन गोत्रो के परिवार नही रहे। यहाँ से स्पष्ट है कि सर्वप्रथम कन्नौज, अलीगढ तथा फिरोजाबाद के पल्लीवाल जाति की मुख्य धारा से अलग हो गये। उसके बाद मुरैना तथा ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवाल भी जाति की मुख्य धारा से अलग हो गये। जो गोत्र एक-दूसरे घटको मे नही मिलते है वे निश्चित रूप मे विभिन्न घटको के अलग होने के बाद बने है। जैसे-अकबरावादी, औरगाबादी तथा फिरोजाबादी। इन गोत्रो से यह भी पता चलता हे कि कन्नाज, अलीगढ तथा फिरोजाबाद क्षेत्र के कुछ पल्लीवाल अकबर तथा पोरगजेब के शासनकाल मे आगरा तथा फिरोजाबाद आदि क्षेत्रो मे रहते थे। गोत्रो के तुलनात्मक अध्ययन को सरल करने के उद्देश्य से चारो घटको के गोत्रो को एक साथ एक ही तालिका मे अलग से दिखाया जा रहा है । इस तालिका मे मात्र एक ऐसे गोत्र को सम्मिलित नही किया गया है जो कि आगरा, अलवर तथा जगरौठो क्षेत्र के पल्लीवालो तथा कन्नौज, अलीगढ तथा फिरोजाबाद क्षेत्र के पल्लीवालो मे मिलता है, लेकिन मुरैना तथा ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवालो मे वह नहीं पाया जाता। यह गोत्र है-'गिदौरिया'। प्रकाशन मे मुविधा की दृष्टि से ही ऐसा किया मया है । यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि 'गिदौरिया' गोत्र के लोग मुरेना तथा ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवालो मे भी थे, लेकिन बाद मे इस गोत्र के लोग इस घटक मे नही रहे, इसी कारण यह गोन इस घटक मे नही मिलता है।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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