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________________ पत्नीवाल जैन जाति की उत्पत्ति एव विकास सख्या में वृद्धि हुई तथा अलग-अलग स्थानो पर चले गये, तब नये गोत्र बन गये। जैसे- नगे सुरिया, नागे सुरिया तथा सुगे सुरिया । ऐसा लगता है कि ये तीनो गोत्र एक गोत्र सुरिया में से ही निकले हैं । इसी प्रकार जनूथरिया-ईट की थाप तथा जनूथरिया - कैम की थाप भी एक ही गोत्र जन्थरिया में से निकले हैं, तथा डगिया, सारग, डगिया मसन्द तथा डगिया रकस भी एक ही निकले हैं । गोत्र डगिया से 25 इससे एक बात और स्पष्ट होती है-चूँकि एक ही गोत्र में से कई-कई गोत्र बन गये तथा कालान्तर में ये स्वतन्त्र गोत्रो के रूप में स्थापित हो गये, भ्रत इन नये बने गोत्रो में प्रापस मे शादीविवाह भी प्रारम्भ हो गये। जैसा आजकल हम शादी-विवाह मे गोत्रो को बचाते है शायद पहले ऐसा नही करते थे । मात्र नाते ही बचाये जाते थे, गोत्र नही । (3) कुछ गोत्रो की स्थापना कुटुम्ब के विशिष्ट लोगो के नाम पर हुई, जैसे--- रायसेनिया तथा कुरसौलिया प्रादि । (4) कुछ गोत्र जो पहले थे लेकिन अब नही है । प्रत या तो उन गोत्र के लोग अब नही है, या फिर उन गोत्रो के परिवारो की संख्या में बहुत कमी आने से वे दूसरे गोत्रो मे सम्मिलित हो गये । (5) कुछ गोत्र बहुत ही नये मालूम पडते है । मुख्य रूप से कन्नौज, अलीगढ तथा फिरोजाबाद क्षेत्र के पल्लीवालो के अकबरपुरिया, श्रौरगाबादी, प्रगरैय्या, तथा फिरोजाबादी गोत्र । अकबरपुरिया गोत्र की स्थापना निश्चित रूप से अकबर के बाद में हुई जबकि आगरा का नाम बदलकर अकबरपुर हो गया था। इसी प्रकार औरगाबादी गोत्र की स्थापना औरंगजेब के बाद हुई तथा फिरोजाबादी गोत्र की स्थापना फिरोजशाह के बाद हुई, क्योकि औरगजेब तथा फिरोजशाह ने क्रमश श्रीरंगाबाद तथा फिरोजा - बाद नगर बसाये । कुछ पल्लीवालो ने वहाँ रहना प्रारम्भ कर
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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