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________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास (2) कन्नौज- अलीगढ तथा फिरोजाबाद क्षेत्र के पल्लीवाल, (3) मुरैना तया ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवाल, (4) नागपुर (विदर्भ) क्षेत्र के पल्लीवाल, (5) सिकन्दरा तथा पालम के सैलवाल तथा (6) पालम तथा अलवर के जैसवाल। इनमे से सैलवाल तथा जैसवाल प्रारम्भ में अलग जातियाँ थीं। लेकिन कालान्तर मे इनके परिवारो की संख्या कम हो जाने से इनको शादीविवाहादि में कठिनाई का अनुभव हुअा। प्रत इस जाति के लोगों ने अन्य जाति के साथ सम्बन्ध स्थापित करने का निश्चय किया। चूकि पल्लीवाल जाति के धार्मिक तथा सामाजिक प्राचार-विचार जैसवाल तथा सैलवाल जातियो से मिलते थे तथा पल्लीवाल जाति भी छोटी जाति होने के कारण अपना क्षेत्र बढाना चाहती थी, प्रत ये जातियाँ आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व पल्लीवाल जाति मे पूर्णत विलीन हो गई। प्रारम्भ के चार घटको के गोत्रो के सम्बन्ध में एक वात मुख्य है कि इन सब घटको के कुछ गोत्र आपस मे एक दूसरे से नही मिलते है। ऐसा लगता है कि इन गोत्रो की स्थापना गल्लीबाल जाति की उत्पत्ति के बहुत बाद मे हुई है । भिन्न-भिन्न घटको के गोत्र निम्न प्रकार से है १. जगरोठी, प्रसवर तथा प्रागरा क्षेत्र के पल्लीवालो के गोत्र (1) सुगे सुरिया, (2) नगे सुरिया, (3) नागे सुरिया, (4) सलावदिया, (5) डगिया मसद, (6) डगिया सारग, (7) डगिया रसक, (8) जनूथरिया-ईट की थाप (9) जथरियाकैम की थाप, (10) राजौरिया, (11) चौर बबार, (12) बहत्तरिया, (13) भडकौलिया, (14) बरवासिया, (15) बारीलिया, (16) बडेरिया, (17) अठवरसिया, (18) नौलाठिया,
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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