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________________ पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एवं विकास 19 पद्मावती नगर होते हुये विदर्भ क्षेत्र की ओर चले गये। आज भी वहाँ पल्लीवाल जैन लोग रहते है। विदर्भ क्षेत्र के पल्लीवालो का मानना है कि इस क्षेत्र मे बसने वाले पल्लीवाल दो रास्तो से आये हैं -एक वर्धा होते हुये तथा दूसरे छिन्दवाडा की ओर से। बाद मे ये सभी पल्लीवाल विदर्भ क्षेत्र के नागपुर तथा वर्धा प्रादि मे बस गये। पिछले लगभग 200-250 वर्ष से ये लोग यहाँ पर ही बसे हुये हैं। यहाँ इनके परिवारो की संख्या लगभग सौ है । ये भी पल्लीवाल जाति की मुख्य धारा से अलग हो गये हैं। गुजरात प्रदेश के काठियावाड क्षेत्र में रहने वाले पल्लीवालो का भी मुख्य धारा से सम्बन्ध समाप्त हो गया तथा ये लोग पूर्णतः गुजरात के ही वासी हो गये । कालान्तर मे इन्होने पल्लीवाल जाति के रूप में अपना अस्तित्व ही खो दिया। ___ गुजरात के पाटन के आसपास रहने वाले पल्लीवालो ने भी मत्रहवी शताब्दी तक इस स्थान का त्याग कर दिया तथा ये धीरे-धीरे पारवाड होते हुये पूर्वी राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे बस गये । ग्राज भी बहुत से पल्लीवाल जयपुर, सवाईमाधोपुर, अजमेर, अलवर, भरतपुर, आगरा तथा मथुरा जिलो मे रहते है। इस प्रकार एक पल्लीवाल जाति के लोग मुख्यत इन चार पल्लीवाल जाति का मारवाड के पाली नगर से कोई विशेष सम्बन्ध रहा हो, ऐसा प्रतीत नही होता है। पल्लकीय गच्छ (जिसे बाद मे पल्लीवाल -गच्छ माना जाने लगा) का पाली नगर से सम्बन्ध रहा है । अत इस गच्छ का पाली से सम्बन्ध होने का अर्थ यह मान लेना की पल्लीवाल जाति का भी पाली से सबध रहा है, गलत है। क्योकि इस गच्छ का पल्लीवाल नाति से कोई विशेष सबध भी नहीं रहा है। अन्य जाति के लोग भी इस गच्छ में दीक्षित होते रहे है। इस बात का हम पहले ही वर्णन कर चुके हैं।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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