SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति एव विकास किया तथा कालान्तर में ये लोग पल्लीवाल जाति के रूप मे परिणित हो गये तो इससे पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति का समय विक्रम की बारहवी शताब्दी तय होता है । लेकिन ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं जिनसे सिद्ध होता है कि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में भी पल्लीवाल जाति थी । वि स 1052 में फिरोजा - बाद के निकट चन्द्रवाड मे चन्द्रपाल नामक पल्लीवाल जैन राजा राज्य करता था । प्रत इससे सिद्ध होता है कि पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति पल्लकीय गच्छ (तथाकथित पल्लीवाल गच्छ ) के याचार्यो द्वारा पाली की जनता को प्रतिबोधित करने पर नही हुई, बल्कि बहुत पहले ही पल्लीवाल जाति अस्तित्व में आ गई श्री तथा बाद मे (बारहवी शताब्दी में ) पल्लकीय गच्छ की स्थापना हुई । वसे भी किसी आचार्य द्वारा आम जनता ( जिसमे धर्मोपदेश सुनने वाले वैश्य वर्ण के अलावा अन्य वर्णो जैसे - लुहार, सुनार आदि के लोग भी रहे होग) को प्रतिबोधित करने पर पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति कसे हो सकती है । क्योकि कालान्तर में इन सबो के जैन धर्म अपनाने पर पत्लीवाल वैश्यो का लहार, सुनार आदि साधर्मी जातियो से राटी-बेटी व्यवहार रहा हो, ऐसा समझ नही आता है । (२.३) पाली और पल्लीवाल मारवाड मे स्थित पाली नामक नगर से पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति मानी जाती है । शब्दों की समानता के आधार पर यदि कहा जाय कि पानी से पल्लीवाल जाति का घनिष्ट सम्बन्ध रहा है तो इससे पूर्व कई बिन्दुओ पर विचार करना होगा | क्या पाली नाम का नगर मात्र मारवाड मे जोधपुर के निकट ही है अथवा कही और भी है ? क्या पल्ली शब्द से मिलते-जुलते अन्य नगर भी हैं ? 'पल्ली' शब्द की प्राचीनता क्या हे ? इन बातो पर हमको सविस्तार विचार करना होगा ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy