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________________ जातिया एक ऐतिहासिक दृष्टि हिस्सो में बँट जाने से बनी हैं। अत अधिकतर जातियो का निर्माण तो राजा चन्द्रगुप्त के समय मे ही हो गया था। बाद मे भी जातियो के निर्माण का यह त्रम चलता रहा । [१३] जैन साहित्य में जाति का सबसे पहला उल्लेख प्राचार्य अनन्तवीर्य ने अपनी 'प्रमेय रत्न माला' जिस हीरप नामक सज्जन के अनुरोध पर बनाई थी उसके पिता को उन्होने 'बदरीपाल' वश का सूर्य कहा है । यह कोई वैश्य जाति मालूम होती है । अनन्तवीर्य का समय विक्रम की दसवी शताब्दी है । प्रमी जी के अनुसार जैन साहित्य मे जाति का यह ही पहला उल्लेख है । दूसरा उल्लेख महाराज भीमदेव सोलकी के सेनापति दिनाथ मन्दिर के निर्माता विमल शाह पोरवाड का वि स 1088 का है। इसकी वशावली मे इसके पहले की तीन पोढियो का उल्लेख है । यदि प्रत्येक पीढी के लिए 20-25 वर्ष रख लिया जाए तो यह समय त्रिस 1020 के लगभग पहुँचेगा । हरिषेण ने स 1044 मे 'धर्म - परीक्षा' की रचना की । उन्होंने अपने को धर्कट वशीय गोवर्धन का पुत्र और सिद्धसेन वा शिष्य बताया है । यहाँ पर उल्लिखित धर्कट-वश धर्कट जैन जाति ही है । यह एक समृद्धिशाली जाति थी । इस जाति का अस्तित्व राजपूताना तथा गुजरात आदि मे रहा है। वर्तमान में इस जाति का अस्तित्व नही जान पडता ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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