SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 120 पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास निवृत हो गये, तदोपरान्त पाप आगरा में रहने लगे। 90 वर्ष की दीर्घायु के बाद आपका दिनांक 31 दिसम्बर सन् 1978 को देहान्त हो गया । सरकारी सेवा से निवृत होने के बाद से ही आपका एक मात्र कार्य धार्मिक ग्रन्थो का अध्ययन करना था । मापने पागम के चारो अनुयोगो का बहुत बारीकी से कई बार अध्ययन किया। करणानुयोग जैसे कठिन विषय भी आपको बहुत सरल तथा रुचिकर लगते थे। आपने धवला, जयधवला तथा महाधवला का भी कई बार अध्ययन किया। यह कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी कि पागम ग्रन्थो का जितना अध्ययन डाक्टर साहब ने किया उतना उनके समय मे शायद ही किसी ने किया हो । आपको ग्रन्थ खरीदने का भी बहुत शौक था। आपने अपना एक निजी पुस्तकालय ही बना लिया था जिसमे हजारो को सख्या मे शास्त्र थे। आपने बहुत से शास्त्र धूलियागज, आगरा के पल्लीवाल' दिगम्बर जैन मन्दिर मे दे दिये । इस मन्दिर मे जितने भी शास्त्र है उनमे ने अधिकतर डाक्टर साहब द्वारा दिये गये है। अापके निजी-पुस्तकालय मे कई हस्त लिखित ग्रन्थ भी थे जिन्हें उनके पितामह तथा पिताजी ने लिखे थे। आप बहुत सी जैन पत्रिकाओ के आजीवन सदस्य भी थे। आप बहुत समय तक विभिन्न सामाजिक, शिक्षण तथा धार्मिक सस्थानो से सम्बन्धित रहे । आप मन्दिर जी मे प्रात काल शास्त्र प्रवचन भी करते थे। वर्षों से आप दिन में एक बार ही भोजन करते थे । आप इतनी बृद्धावस्था मे भी नित्य प्रति मन्दिर पाते थे। आप बहुत ही सरल परिणामी व्यक्ति थे। आपकी अन्तिम इच्छा थी कि आपके नेत्र दान कर दिये जायें तथा आपका दिवगत शरीर मेडिकल कानेज के विधार्थियो को अध्ययन हेतु दे दिया जाय । आपके पुत्रो द्वारा इस अन्तिम इच्छा की पूर्ति 31 दिसम्बर सन् 1978 को मापके दिवगत हो जाने पर पूरी कर दी गई।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy