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________________ विशिष्ठ व्यक्तियों का संक्षिप्त परिचय मास जेष्ठ शशि पक्ष की एकादशी विचारि नखत स्वाति गुरुवार दिन, उत्तरायन रविसार ॥ ॥ एक सहस ग्ररू आठ सतक, बरस असीति प्रर । 101 याही संवत् मो करी, पूरन इह गुरण और || 2 || कवि मनरगलाल ने अपनी जाति, गौत्र और पूर्वजो का उल्लेख निम्न पदो में किया है अब सुनहु मित्र बनाय बकी विधि कौन विधि बनियो भयो । शुभ दे अन्दर वेद मजट कान्ह-कुन्ज भलो ठयो || तहा पल्लिवार इक्ष्वाकुवंशी, कहे काशिव गोत्रिया | जिनदेव शास्त्र सिद्धान्त सुगुरु नीति जिनके प्रतिप्रिया ॥ शुभ करहि चर्चा पठहि निश दिन धरहिं सरधा जानिके । तिन सत्रनि मह इक बसत श्रावक नाम कहो बखानिकै ॥ हुल्लासराय सुनाम तिनको, कहत सच जन टेरिके । तिनके जुगल सुन भयो भपर सिद्ध सब अधि परिके ॥ शुभ 'जेष्ठलाल कनौजी, गोविन्दराव नाम कनिष्ट की। तिन शिशुन मह जो जेष्ठ मनरगलाल नाम कहै सबै || निलाल तनरग के सुमित्र गुपालदास भये तबै ॥ नमिचन्द्रिका एक खण्ड काव्य है । इसकी पद संख्या 486 है । कवि ने इसमे दोहा, चौप ई भुजग प्रयान, नाराव, सोरठ, डिल्ल गीता छप्पल, त्रोटक, पद्धरी आदि छन्दो का प्रयोग किया । इस ग्रन्थ मे सभी छन्द ग्रन्थ है । कवि मनरगलाल की नेमिचन्द्रिका की प्रशसा डा० नेमीचन्दजी शास्त्री ने भी अपने 'हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन' मे की है । उनकी अन्य रचना 'चौबीसी पूजा पाठ' के लिए भी इन्होने लिखा है । मनरग का 'चौबीसी पूजा पाठ संगीत की दृष्टि से अद्भुत है। इसमे प्राय. सभी प्रमुख संस्कृत के छन्दो का प्रयोग कवि ने बडी निपुणता से किया है। वार्षिक वृतो को श्रुतिमधुर बनाने का
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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