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________________ विशिष्ठ व्यक्तियों का सक्षिप्त परिचय स्वाध्याय करते हुये देखा । वे बहुत खुश हुये पोर उन्हें अपने साथ मथुरा ले पाये । वहाँ उन्हे बहुत आदर के साथ रखा, परन्तु पडित जी को वह भोगोपभोग सम्पदा अरुचिकर प्रतीत हुई, फलस्वरूप वे कुछ दिन बाद वहाँ से लश्कर और बाद में अपनी जन्मभूमि सासनी मे आ गये। ___ कु" समय बाद पडित जी सासन से अलीगढ आकर छीट छापने का कार्य करने लगे। छपाई का काम करते हुये भी पाप अपने विद्याभ्यास का अनुराग कम न कर सके और चौकी पर जैन सिद्धान्त के ग्रन्थ रखकर छपाई का काम करते हुये 50 या 60 पद्य रोजाना कण्ठस्थ कर लेना आपका दैनिक कर्तव्य था। आप सस्कृत के अच्छे विद्वान थे तथा जैन सिद्धान्त के परिज्ञान की आपकी बलवती भावना थी। उस समय आपके कुछ पूर्वकृत कर्म का अशुभोदय था जिसे आपने विवेक और धैर्य के साथ सहा । कुछ दिनो पश्चात् पडित जो अलीगढ से देहली आ गये और देहली से साधर्मी, वात्सल्य प्रेमी सज्जनो की मोष्ठी को पाकर अपना अधिकाश समय तत्व चिन्तन, सामायिक और सिद्धान्त शास्त्रो के स्वाध्याय जैसे प्रशस्त कार्यो मे व्ययीत करने लगे। प्रापका सैद्धान्तिक ज्ञान बढा-चटा था और आपको तत्वचर्चा करने मे खूब रग पाना था । वस्तुतत्व का विवेचन करते हुये उनका हृदय प्रमोद भावना से परिपूर्ण हो जाता था। बीच मे श्रोतामो के प्रश्न होने पर उनका उत्तर बड़ी ही प्रसन्नता के साथ देते थे। श्रोताजन उनके सन्तोषजनक उत्तरो को सुनकर हर्षित होते थे और उनकी मधुर वानी का पान बडी भक्ति और श्रद्धा के साथ करते थे। आपने वस्तुतत्व का मन्थन कर उसमे से जो नवनीत रूप सार अथवा पीयूष निकाला उसका अनुभव मापकी सवत् 1891 मे रची जाने वाली एक महान् कृति छहढाला से ही हो जाता है। कविवर ने सबत् 1910 मे माघ वदी चतुर्दशी के दिन गिरि
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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