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________________ 90 पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास भी दिया है । ये अग्रवाल जाति के थे तथा इनका गोत्र गर्म था । पाण्डे रूपचन्द जी की मृत्यु वि० स० 1694 में हुई । दूसरे प० रूपचन्द प० बनारसीदास जी के उन पाँच साथियो मे से एक थे जिनके साथ बनारसीदास जी परमार्थ की प्राध्यात्मिक चर्चाये किया करते थे । इनका नामोल्लेख प० बनारसी दास जी ने अपने 'प्रद्ध-कथानक' तथा 'नाटक समयसार' दोनो मे किया है । 'नाटक समयसार' की प्रशस्ति मे कविवर लिखते है'रूपचन्द पडित प्रथम, दुतिय चतुर्भुज नाम || तृतिय भगौतीदास नर कौंरपाल गुनधाम ॥ धर्मदास ये पत्र जन, मिलि बैठे इक ठौर । परमारथ चरचा करे इनके कथा न औौर ॥' इन पडित रूपचन्द ने दोहा परमार्थ या परमार्थी दोहा शतक, परमार्थ गीत या गीत परमार्थ, पच कल्याण मंगल या पच मगल पाठ, अध्यात्म सवैया, खटोलना गीत तथा स्फुट गीत की रचनाएँ की हैं । तीसरे रूपचन्द प० बनारसीदास जी के बहुत बाद में हुये है । ये भो उपरोक्त दो रूप चदो की तरह आगरा के रहने वाले थे । इन्होने प० बनारसीदास जी के 'नाटक समयसार' की टीका सवत् 1798 मे की। इनके द्वारा की गई प्रतिलिपि की कुछ हस्तलिखित रचनाएँ मोती कटरा (आगरा) के दिगम्बर जैन मन्दिर मे भी मोजूद हैं। 26 प नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार सवन्द नाम के नार विद्वान हुए है । 36 इनके अनुसार पाण्डे रूपचन्द तथा 'समवसरण पाठ (संस्कृत) के रचयिता रूपचन्द दो अलग-अलग ब्यक्ति हैं लेकिन अधिकतर विद्वान श्री प्रेमी से सहमत नही है तथा वे 'समवसरण पूजा' के रचयिता पाण्डे रूपचन्द को ही मानते है । • एक जनश्रुति के अनुसार 'पच मगल पाठ' के रचयिता प० रूपचन्द पल्लीवाल जाति के थे । प्रत प० बनारसीदास जी के
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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