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________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास कारण ही धनपाल काव्य रचना के क्षेत्र में दक्ष है तथा इस ही के परिणाम स्वरूप वे इस रचना को बना सके है। यह कार्य इन्दुदर्शन सूर्याक सम्बत् यानि कि वि० स० 1261 के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गुरुवार को पूर्ण किया। इस काव्य मे बारह सौ से कुछ अधिक पद है। कवि ने ऐसी आशा प्रगट की है कि जब तक सूर्य रहेगा, इसे पढ़ने वाले इससे आनन्द प्राप्त करेगे। यहाँ से यह स्पष्ट है कि धनपाल का जन्म पल्लीवाल कुल मे हुआ था। मुनि श्री जिनविजय जी तथा श्री नाथूराम प्रेमी के अनुसार 'पल्लीपाल' शब्द 'पल्लीवाल' का ही प्राकृत भाषा का रूपातरण है। अत कवि धनपाल पल्लीवाल जात्युत्पन्न ही थे। उस समय गुजरात के पश्चिमी भाग मैं चालुक्यो के सोलकी साम्राज्य की राजधानी अरणहिल्लपुर (पाटण) के सुप्रसिद्ध पल्लोपाल कुल मे कवि के पिता प्रामन का जन्म हुआ था। प्रामन भी विद्वान थे तथा इन्होने नेमिचरितम्' की रचना की। आमन के बडे पुत्र अनन्तपाल ने भी 'पाटिगणित' लिखा। इससे पता चलता हे कि आमन का पूरा परिवार बहुत पढा-लिखा था तथा ये सभी विद्वान थे। लेकिन दुर्भाग्यवश इस परिवार के धनपाल की मात्र एक रचना तिलक मजरी सार' ही उपलब्ध है। अन्य रचनाये या तो ना हो गई अथवा अभी तक प्रकाश मे नही पाई है। मुनि श्री जिनविजय जी के अनुसार वनपाल पल्लीवाल दिगम्बर थे। श्वेताम्बर पडित लक्ष्मीधर पल्लीपाल-धनपाल के समकालीन थे। ये भी अणिहल्लपुर के निवासी थे तथा इन्होने भी 'तिलक मजरी कथा सार' की रचना वि० स० 1281 मे की, लेकिन इन्होने अपनी रचना मे न तो ग्यारहवी शताब्दी के धनपाल का (जिन्होने मूल 'तिलक मजरी' लिखी) और न ही पल्ली
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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