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________________ -जरा-मरण को नष्ट जरमरणक्खय [(जरा जर)-(मरण) -(क्ख य) 2/1] कुणहि (कुण) विधि 2/1 सक -करे 55 सहि राहिं छहरसहि पहि रूवहि चित्त, नासु (सव्व) 3/2 सवि (राय) 312 [(छह) वि-(रस) 3/2] (पच) 3/2 वि (रूव) 3/2 (चित्त) 1/1 (ज) 6/1 स अव्यय (रज-रजिअ) भूक 1/1 (भुवणयल) 7/1 (त) 2/1 स (जोइ→य) 8/1 'य' स्वार्थिक (कर) विधि 2/1 सक (मित) 2/1 -प्रासक्तियो द्वारा छ रसो द्वारा -पांच -रूपों द्वारा -चित्त =जिसका नहीं =रंगा गया है -पृथ्वीतल पर -उसको -हे योगी बना -मित्र ण रजिउ भुवणयलि સો नोइय करि मित्त 56 देह गलतह सव गलइ (देह) 6/2 (गल-गलत) व 612 (सव) 1/1 वि (गल) व 3/1 अक (मइ) 1/1 (सुइ) 1/1 (धारणा) 1/1 गलती हुई होने पर -सब कुछ क्षीण हो जाता है -इन्द्रिय ज्ञान -शब्द ज्ञान -मन की स्थिरता मह धारण 1 समास मे ह्रस्व का दीर्घ का ह्रस्व हो जाया करता है (हे प्रा व्या 1-4) | 2 अपभ्रंश मापा का अध्ययन, पृष्ठ 174 । 3 अपभ्रश मापा का अध्ययन, पृष्ठ 151 (कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-134)। 541 [ पाहुडदोहा चयनिका
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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