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________________ सिद्धत्तरगड तरणरण सिद्धत्तण परि पावियह चित्तह1 णिम्मलएण (सिद्धत्तण) 4/1 -सिद्धत्व के लिए (तण) 3/1 -शरीर से (सिद्धत्तण) 1/1 -सिद्धत्व अव्यय =किन्तु (पाव-माविय) व कर्म 3/1 सक प्राप्त किया जाता है (चित्त) 6/2 -चित्त के (णिम्मलम) 3/1 'अ' स्वार्थिक =निर्मल होने से 50 प्ररि अव्यय -अरे मरणकरह [(मण)-(करह) 8/1] =मनरूपी ऊंट अव्यय (रइ)2/1 रमण करहि (कर) विधि 2/1 सक -कर इदियविसयसुहेण [(इदिय)-(विसय)-(सुह)3/1] =इद्रिय-विषयो से (मिलने वाले) सुख के कारण सुक्ख (सुक्ख) 1/1 -सुख गिरतर (रिगरतर) 1/1 वि -निरंतर (ज) 3/2 स -जिनके कारण अव्यय -नहीं अव्यय -पादपूरक मुच्चहि (मुच्चहि)विधि कर्म 2/1 सक अनि-छोड़ दिए जाने चाहिए (त) 1/2 स अव्यय खणण क्रिविन -तुरन्त जेहि वि 51. तूसि -प्रसन्न रह (तूस) विधि 2/1 अक अव्यय (रूस) विधि 2/1 अक रूसि -नारान हो ___ यहा बहुवचन का एकवचनार्थ प्रयोग है (श्रीवास्तव अपभ्रश भामु का अध्ययन, पृष्ठ, 151)। पाहुडदोहा चयनिका ] [ 51
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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