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________________ सूरु विरणासह तिमिरहरु एक्कल्लउ णिमिसेण 42. जोइय हियss जासु पर एक जिन णिवसइ देउ तो पावइ परलोड 43 कम्मु पुराइउ जो (सूर) 1/1 (विरणास ) व 3 / 1 सक [ ( तिमिर) - (हर) 2 / 1 ] ( एक्कल्ल) 1 / 1 वि 'अ' स्वा अव्यय (ज) 6/1 स (पर) 1/1 वि (एक) 1 / 1 वि श्रव्यय (विस) व 3 / 1 अक (देश्र ) 1/1 जन्ममरण [( जम्म) – (मरण) (विवज्ज - भूक्क जन्म-मरण से रहित विवज्जियउ विवज्जियविवज्जियन) भूकृ1/1 'अ' स्वार्थिक] अव्यय खवइ श्रहिणव पेसु प देइ परमणिरजणु रणवइ (जोइय) 8/1 'य' स्वार्थिक (हिय + अडन) 7 / 1' अड' स्वा (पाव) व 3 / 1 सक (परलोअ ) 2/1 (कम्म) 2 / 1 ( पुराइ) 2 / 1 वि (ज) 1 / 1 सवि (खव) व 3 / 1 सक (हिरणव) 6/1 वि (पेस) 2/1 अव्यय (दा) व 3 / 1 सक [ (परम ) वि - (रिजण) 2 / 1वि ] (गव) व 3 / 1 सक = सूर्य = नष्ट कर देता है = प्रन्धकाररूपी घर को = अकेला = तुरन्त पाहुडदोहा चयनिका ] = हे योगी = मन मे = जिसके =परम एक =ही = निवास करता है। ===देव =तव = प्राप्त करता है - परलोक = === कर्म को (कर्मों करे) = पुराने किये हुए = जो = नष्ट करता है = नये का = = प्रवेश - नहीं = देता ==परम निर्दोष को ==नमन करता है [ 47
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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