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________________ 14. अप्पा बुज्झिउ णिच्चु जइ केवलणाणसहाउ । ता पर किज्जइ काई वढ तणु उप्परि अणुराउ ॥ 15. जसु मरिण गाणु ण विष्फुरइ कम्महं हेउ करंतु । सो मुरिण पावइ सुक्खु ण वि सयलई सत्य मुरणंतु ॥ 16. बोहिविवज्जिउ जीव तुहं विवरिउ तच्चु मुणेहि । कम्मविणिम्मिय भावडा ते अप्पारण भरणेहि ॥ 17. रण वि तुहं पंडिउ मुक्खु ण वि ण वि ईसरु ण वि णीसु । ण वि गुरु कोइ वि सोसुण वि सन्चई कम्मविसेसु ॥ 18 ण वि तुहुं कारणु कज्जु ण वि ण वि सामिउण वि मिच्चु। सूरउ कायरु जीव रण वि ण वि उत्तमु ण वि पिच्चु । 19. पुण्णु वि पाउ वि कालु गहु धम्मु प्रहम्मु ण काउ । एक्कु वि जीव ण होहि तहुं मिल्लिवि चेयरणभाउ ॥ 20. जवि गोरउ वि सामलउण वि तुहं एक्कु वि वण्णु । ण वि तणुअंगउ थूलु ण वि एहउ जाणि सवण्णु ॥ 21. देहहो पिक्खिवि जरमरणु मा भउ जोव करहि । जो अजरामरु बभु पर सो अप्पारण मुणेहि ॥ [ पाहुडदोहा चयनिका
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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