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________________ आने लगती है कि यौवन, जीवन, धन, घर और सम्पदा जल की एक बूंद की तरह अस्थिर हैं। मृत्यु के आने पर किसी को काई नही बचा सकता । देह मरणशील है । देह मे बुढापा और मृत्यु दोनो होते हैं । देह मे भिन्न-भिन्न प्राकृतिया होती हैं । रोग भी देह मे ही होते है (22)। इस तरह से वस्तुप्रो की अनित्यता और जीवन की अस्थिरता की अनुभूति के कारण वह अपने आप से प्रश्न पूछता है--क्या यहां कुछ नित्य है ? क्या यहाँ कुछ स्थिर है, अमर है ? इस प्रश्न के उत्तर की खोज मे वह आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है (45)। इस ज्ञान के फलस्वरूप उसमे आत्म-तत्व के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। पाहुडदोहा का कथन है कि आध्यात्मिक ज्ञान के बिना व्यक्ति स्थिर आत्म-तत्व को नही समझ सकता है (16) । मुनि रामसिंह ऐसे बहुत शब्दो के ज्ञान को (68), बहत शास्त्रो के अभ्यास का निरर्थक मानते हैं जो अमरता, नित्यता के प्रति आस्था उत्पन्न न कर सके (54, 68, 69, 70) । व्याख्यान देते हुए ज्ञानी ने यदि आत्मा मे चित्त नही दिया तो वह करणो को छोडकर भूसा ही इकट्ठा कर रहा है (47, 48) । अत्यधिक बाहरी जानकारी होते हुए भी यदि व्यक्ति प्रात्म-बोध-रहित बना रहता है तो यह बाह्य जानकारी उसके जीवन मे उचित परिणाम उत्पन्न करने में असमर्थ रहती है (46)। वह व्यक्ति जो अपने अन्दर स्थित शान्त और शुद्ध प्रात्मा को नहीं देखता और उसे तीर्थों और देवालयो मे खोजता है वह अज्ञानी है (52, 85,86)। यह सच है कि बाहरी वस्तुओ की अनित्यता तो आसानी से अनुभव मे आ जाती है किन्तु देह का आत्मा से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण देह की अनित्यता को समझना कठिन रहता है और इस कारण से मरण-भय से छुटकारा पाना कठिन हो जाता है (21)। इसलिए पाहुडदोहा का समझाना है कि आत्मा और अन्य का मिलाप कभी नही होता है, वह क्या करेगा जिसके पास अपने आपका देह से अलग करने की कला नही है (53) ? पाहुडदोहा ने देह से भिन्न आत्मा मे रुचि उत्पन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार से हमे समझाया है, जैसे--जगत की शोभा यात्मा को छोडकर जो लोग 'पर' मे टिकते हैं वे मिथ्यादृष्टि है (38) । पाहुडदोहा ने शरीर के विशेषणो को प्रात्मा मे नकारा है और कहा है कि आत्मा तो पाहुडदोहा चयनिका ] [v
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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