SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाहुड-दोहा अवघर अक्खरुज उप्पजड़ । अणु वि किं पि अण्णाउण किन्नइ ॥ आयई चित्ति लिहि म धारिवि। सोउ णिचिंतित पाय पसारिधि ॥ १४४ ।। कि बहुएं अडबड डिण देह ण अप्पा होइ। देहेहं भिण्ण णाणमउ सो तुहुं अप्पा जोइ ।। १४५ ॥ पोत्या पर्णि मोक्छु कहं मणु वि असुर जानु । बहुवारउ लुद्धर णवइ मूलहिर हरिणांसु ॥ १४६ ।। दयाविहीण धम्मडा णाणिय कह बिण जोइ। बहुएं सलिलबिरोलियई कर चोप्पडा महोइ ॥ १४७ ॥ मल्हाणं वि णानंति गुण जहिं सह संगु सलेहिं । बदमाण लोहहं मिलिउ पिडिजइ सुषणेहिं ॥ १४८ ॥ हुर्यवाहि पाइ ण सकियर यवलत्तणु संखस्स। 1 फिट्टीसइ मा मंति करिड मिलिया खेचरस्म ।। १४९ ।। संखसमुहि मुकियए एही होइ अवन्थ । जो दुन्याहह चुंबिया लापविणु गलि हत्य ॥ १५० ॥ क.मणि, २८.पा. क.में यह दुरी पनि मिन है । जो बह जाने के सर नई पी जाती- रि मणज विचट दिगण ह... वह कहरिणाह. ', क. विहगड. ६.या कहि मि. ७ कमला मि.८६. दु. १ क, सधिया. ९० द. परस्स.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy