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________________ २२ पाहुड - दोहा अप्पा दंसणणाणमर सयलु वि अण्णु पयालु । इयं जाणे विणु जोइयहुं छंडहु मायाजालु ॥ ६९ ॥ अप्पा मिल्लिचि जगतिलउ जो परंदन्नि रमति । अणु कि मिच्छादिट्टियां मत्थई सिंगई होंति ॥ ७३ ॥ | अप्पा मिलिवि जगतिलउ मूढ म झायहि अण्णु । जिं मरगर परियाणियर तेंदु किं कचहु गण्णु ॥ ७१ ॥ सुहपरिणामहिं धम्पु वढ असुहई होइ अहम्मु । दोहि मि एहिं विवज्जियँउ पावइ जीउ ण जम्मु ॥ ७२ ॥ सई भिलिया सई विहडिया जोइय कम्म णिभंति । तैरलसहावहिं पंथियहि अण्णु कि ग्राम वसंति ॥ ७३ ॥ अण्णु जि जीउ म चिति तुहुं जड़ वीउ दुक्खस्स । तिलतुस मित्तु वि सडा वेयण करइ अवस्स || ७४ ॥ अप्पाए वि विभावियई गासह पाउ खणेण । विणासह तिमिरहरु एकलउ णिमिसेण ॥ ७५ ॥ · १. द. स. २द, इम. ३ क 'हो. ४ क. वि जयति ५ क. परव्य ६ क. . ७ . तहो. ८ क दोहं मि. ९. के. . . १० के. त्रिवजियण. ११ क. नरलसहाव वि; द. नगद सहाब वि. १२ . भयउ १३ क में यहां से आगे को तीन उड़ गई हैं. .
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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