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________________ पाहुड-दोहा मिल्लहु मिल्हु मोकलर जहिं भावइ तहिं जाउ । सिद्धिमहापुरि पइसरउ मा करि हारिमु विसार ॥४८॥ सणु मिलियउ परमेसरहो परमेसरु जि मणस । विणि वि समरसि हुइ रहिय पुज चडावई कस्स ॥ १९ ॥ आराहिजइ देउ परमेसरु कहिं गयउ । बीसारिजइ काई तासु जो सिउ सवंगउ ॥ ५० ॥ अम्मिए जो पर सो जि पर परु अप्पाणे ण होइ । हा उज्झउ सो उपरइ बलिविण जोबइ तो ई॥५१ ॥ मृदा सयलु वि कारिमर णिशारिमण कोइ । जीवहु जतै ण कुडि गइय इउँ पडिछंदा जोइ ।। ५२ ॥ दहादेवलि जो सइ सत्तिहिं सहिया दे। को तहिं जोइय सत्तिसि र सिन्धु गसहि भेट ॥ ५३॥ जग्इ ण मरइ ण संभवइ जो.परि को वि अणंतु ।। तिवणसामिर णाणमउ सो सिदेउ णिभंतु ॥ ५४॥ क, परमसरहं.२६, काई दिड. ३ क. जि. ४ क. अम्मणा. ५क. तो वि.द.तु.७ क. हु. ८ क. "देउलि. ९क में यह पंधिः स्याही उह जाने के कारण पटी नहीं जा सकी. २.द.पर. ११ क.सिड,
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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