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________________ हिन्दी अनुवादे १ जो आत्म और पर की परम्परा का भेद दर्शाता है वह दिनकर (सूर्य) गुरु है, हिमकिरण (चन्द्र) गुरु है, दीप गुरु है और देव भी गुरु है । ३ ५ जो सुख अपने अधीन हो उसी से सन्तोष कर । दूसरों के सुख की चिन्ता ( अभिलापा) करने वालों के हृदय का सोच, हे मूर्ख, कभी नही फिटता । जो सुख विषयों से पराङ्मुख होकर अपनी आत्मा के ध्यान में मिलता है वह सुख करोड़ों देवियों के साथ ( या देवियों की कोटि में ) रमण करने वाला इन्द्र भी नही पाता । विषयसुखों का पूरा उपभोग करते हुए भी जो हृदय में उनकी धारणा नही करते वे शीघ्र शाश्वत सुख का लाभ उठाते हैं, ऐसा जिनवरों ने कहा है । विषयसुखों का उपभोग न करते हुए भी जो हृदय में उनका भाव रखते हैं वे नर बेचारे शालिसिक्थ के समान नरकों में पड़ते हैं । ( शालिसिक्थ की कथा के लिये देखो टिप्पणी ) |
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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