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________________ पाहुड-दोहा पाहुड. १९ = भावपाहुडटीका गाथा १०८ पा. १४६ % मा, टी. १६२; पाहुड, १४७ = चरित्र पाहुड टीका गा. ११. पाहुडदोहा और हेमचन्द्र सब से अधिक महत्वपूर्ण और चित्तग्राही इस ग्रंथ का सम्बन्ध हेमचन्द्राचार्य कृत प्राकृत व्याकरण से है। इस व्याकरण के चौथे पाद के अपभ्रंश सम्बन्धी सूत्रों के उदाहरण रूप इस ग्रंथ के कुछ दोहे हमें मिले हैं । ऐतिहासिक एवं पाठभेद की दृष्टि से ये सामजस्य इतने उपयोगी हैं कि हम उन्हे यहां उद्धृत करना आवश्यक समझते हैं:-- पाहुउदोहा सयल वि को वि तडफडइ सिद्धत्तण तणेण । सिद्धत्तणु परि पावियइ चित्तहं णिम्मलएण ॥ ८८ ॥ ठंडेषिणु गुणरयणणिहि अग्वनिहिं विप्पंति । तहि संखाहं विहाणु पर मुधिनति ण भंति ॥ १५१॥ आवइ गिरामइ परमगइ अन्न विल ण लहंति हेम. व्याकरण साह वि लोउ तडप्फडइ वहुत्तणहो तणेण । वगुप्पणु परिपापिया हत्यि मोकलडेण ॥ ३६६ ॥ जे छवेविणु रयणनिहि अप्पडं तडि घलंति । तह संखहं विट्टाल पर फुकिजंत भमन्ति ॥ ४२२ प्राइव मुणिहं वि भंतडी ते माणअडा गणति ।
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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