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________________ पाहुड - दोहा उत्तरगुणों की संख्या चौरासी लाख कही गई है | परिचय के लिये मूलाचार का ग्यारहवाँ अध्याय देखिये । इसी भाव के लिये देखो दोहा १०९. २३. यह गाथा कुन्दकुन्दाचार्य कृत भावप्राभृत में निम्न रूप में पाई जाती है- १०८ सो णत्थि तं परसो चउरासीलक्खजोणिवासम्मि । . भावविर विसवणो जत्य ण दुरुदुल्लिभो जीव ( जीवो ) ||१७|| ३२. खत्रणअ से क्षपणक अर्थात् दिगम्बर और सेवड से. ताम्र का अभिप्राय है। देवसेन ने अपने दर्शनसार तथा भावसंग्रह दो ग्रंथों में से संघ की उत्पत्ति के सम्वन्ध में निम्न गाथा लिखी है: छत्तीसे वरिसर विकमरायस्स मरणपत्तस्स । सोर बलही उप्पण्णो सेबडो संधो ॥ दर्शन०, ११: भाव० ५२. अर्थात विक्रमादित्य की मृत्यु के १३६ की पथात सौराष्ट्र - देश के भोपुर में शेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ । यह दोहा परमात्मप्रकाश ८३ में भी पाया जाता है। वहां : संस्कृत टीका में बंद का अर्थ बौद्ध किया गया है ।
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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