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________________ ग्रंथ का नाम नहीं है। किन्तु मेरा ऐसा ध्यान है कि अधिकांश ग्रंथ के दोहों का पाठ असंदिग्ध रूप से इस संस्करण में निश्चित हो गया है। जैसा कि आगे चलकर बतलाया जायगा, इस ग्रंथ के अनेक दोहे परमात्मप्रकाश में व कुछ दोहे योगसार तथा हेमचन्द्र कृत प्राकृत व्याकरण में मुझे मिले हैं। किन्तु इन ग्रंथों के पाठभेद अंकित नही किये गये। आवश्यकतानुसार उन पाठभेदों का टिप्पणी में उपयोग किया है। २, ग्रन्थ का नाम इस ग्रंथ के नाम के साथ जो दोहा शब्द लगा है वह उसके छंद का बोधक है । जैनियों ने पाहुड शब्द का प्रयोग किसी विशेष विषय के प्रतिपादक ग्रंथ के अर्थ में किया है। कुन्दकुन्दाचार्य के प्रायः सभी ग्रन्थ 'पाहुड' कहलाते हैं, यथा समयसारपाड्ड, प्रवचनसारपाहुड, भावपाहुड, बोधपाहुड़ इत्यादि । गोम्मटसार जीवकाण्ड की ३४१ वी गाथा में इस शब्द का अर्थ अधिकार बतलाया गया है ' अहियारो पाहुडयं ' । उसस ग्रंथ में आगे समस्त श्रुतज्ञान को पाहुड कहा है। इससे विदित होता है कि धार्मिक सिद्धान्त-संग्रह को पाहुड कहते थे। पाहुड का संस्कृत रूपान्तर प्राभृत किया जाता है जिसका अर्थ उपहार है । इसके अनुसार हम वर्तमान ग्रंथ के नाम का अर्थ ' दोहों का उपहार' ऐसा ले सकते हैं।
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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