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________________ पाहुड-दोहा वारणहं - बारितुम् १८९. वाल- वाल (रोमन् ) ९४. वावर - व्याप इन्व्यात्रियते ५५. वावार-व्यापार २०३, २०४. वास-(तत्सम) १२, २०, आदि, चाहि - वाहय (देखो वह ) १५, वर-(तत्सम ) २०,३१. बराय - बराक ५६. वल-'लिपि वलिना ५१. बलि- बील १८९,१९२. ववसाय-व्यवसाय २०२, २०५. ववहार-व्यवहार ६८, वस-वश १०,९६. बस-वम् इति ५३, ९४; संति ७३; "संत-वसत् ४१, १००, आदि; सावइ. वासयति १८१; सिय उपिन १९२. वह-इ-वहति १८१; 'हाइ. काहयाति १३०; वाहि-वाह्य १५, १६.. बह-वध १०५. यंच - ठं-वञ्चयामि १३९, चंद-उ-वन्दत ४१ हु-बन्दश्वम् वाहि-व्याधि २१०. वि - पि (अपि) ३,१० आदि. (हि. भी.) विगुत्त-विगुप्त (सचेल) १५४ विच-वर्मन् १८८, (हि. बीच-मध्य) विचित्त-विचित्र ३४. विचित-हि-विचिन्तयसि ११. विडाविड - रचित ( कल्पित) १९९. ('रचक्षमहाबह विड-विहाः' हेम.४, ९४.) अविढप्प-अर्ज इ.सयत (वर्षत) १९, (अविष्मः, चंदय - बन्दक (३) ३२. वंस- ८६. बाद- वनन्, का पटक १०६, चादविवाद - ( तत्सम ) २१७. बामिय - वामीकृत १८१. चार- टं-यारलामि ११८ ०१ शरय १५५, १७०, विणड-सन्त्य जति १९६ (परगुप् हेम. ४, १५० गुप्यावरही. सम्भवतः विनट में बना है। यहां प्रसंग में स्मज् का अर्थ अधिक उपयुक होता है.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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