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________________ ५४ पाहुड-दोहा जिम लोणु विलिजइ पाणियहं तिम जइ चित्तु विलिज । समरेसि हुबइ जीयता काई समाहि करिज ॥ १७६ ॥ जइ इ हि पौवीसि पय अंकय कोडि करीसु । णं अंगुलि पय पयडणई जिम सव्वंग य सीलु () ॥१७७॥ तित्थई तित्थ भमंतयहं संताविजइ देहु । अपं अप्पा झाइयई णिव्वाणं पर देहु ।। १७८ ।। जो पई जोइउं जोइया तित्थई तित्थ भमेइ । मिड पई सिहं 'हहिंडियउ लहिरिण सकिउ तोइ ।। १७९।। गृहा जोबइ देवलई लोयहिं जाई कियाई। देह ण पिच्छइ अप्पणिय जहिं सिर संतु ठियाई ॥ १८० ।। घागिय किय अरु दाहिणिय मज्झइं वहइ णिराम । नहिं गामडा जु जोगाइ अवर वसावइ गाम ॥ १८१ ।। देव तुहारी चिंत महु ममणपसरवियालि । नुहुँ अच्छे हि जाइ सुर परइ णिरामइ पालि ॥ १८२ ॥ क. समरस हवठ.२ क, में देहा नं. १७७ और १७८ मा सदा शिरीन है, किन्तु स्याही उढ़ जाने से अक्षर इतने सस्पट होगय .. कागोरन में इस प्रति से यहां कोई विशेष सहायता नही मिल ३२. पाचासि.द.हंदियउ... अच्छेसह. . .
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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