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________________ पाहुड-दोहा अखई णिरामइ परमगइ अन्ज वि लउ ण लहंति । भैग्गी मणहंण मंतडी तिम दिवहडा गणंति ॥ १६९ ॥ सहजअवत्थहिं करहुलउ जोइय जंतउ वारि। अखंड णिरामइ पेसियउ सई होसइ संहारि ॥ १७० ॥ अखई णिरामइ परमगइ मणु घल्लेप्पिणु मिल्लि । तुट्टेसइ मा भति करि आवागमणहं चेल्लि ॥ १७१ ॥ एमइ अप्पा झाइयइ अविचलु चित्तु धरेवि । सिद्धिमहापुरि जाइयइ अह वि कम्म हणेवि ॥ १७२ ॥ अक्खर,डिया मसिमिलिया पादता गय खीण । एक ण जाणी परम कला कहिं उग्गउ कहिं लीण ॥ १७३॥ वे मंजेविण एकु किउ मणहं ण चारिय चिल्लि। तहि गुत्वहि हउंसिस्मिणी अण्णहि करमिण लल्लि ।। १७४॥ अग्गई पच्छई दहदिहहिं जहिं जोवउं तहिं सोइ । ता महु फिट्टिय मंतडी अवसु ण पुच्छइ कोइ ।। १७५ ॥ ': द. अम्बय. २ द. भगा.३६. जोई. ४ क. मिलिया. क. अयसडी.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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