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________________ नेमिनाथमहाकाव्य । [ ३७ - अतिरिक्त जो अन्य वर्णन हैं, वे कथानक से अधिक दूर नहीं हैं जबकि वाग्भट . के बहुत-से वर्णनो का कथानक मे कोई सम्बन्ध नहीं है। मिनिर्वाण तथा नेमिनाथमहाकाव्य दोनो ही सस्कृत-महाकाव्य के ह्रासकाल की रचनाएं हैं। उस युग के अन्य अधिकाश महाकाव्यो की तन्ह इनमे भी वे प्रवृत्तियां दृष्टिगत होती हैं, जिनका प्रवर्तन भारवि ने किया था और जिन्हे विकमित कर माघ ने साहित्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया । वाग्भट पर यह प्रभाव भरपूर पडा है, कोतिराज अपने लिये एक समन्वित मार्ग निकालने में सफल हुए है । नेमिनिर्वाण मे पूर्वोक्त शृगारिक प्रमगो का सन्निवेश तथा वस्तुव्यापार के अलकृत वर्णन माघ के मतिशय प्रभाव का परिणाम है । माघ का प्रभाव वाग्भट को वर्णन-शैली पर भी पडा है। उनके वर्णन माघ की तरह ही कृत्रिम तथा दुराल्ढ कल्पना से आक्रान्त हैं । वाग्भट और कोतिराज की कविता मे क्या अन्तर है, इसका दिग्दर्शन तो तुलनात्मक रीति से ही सम्भव है । सक्षेप में कहा जा सकता है कि कोतिराज के वर्णन स्वाभाविकता से परिपूर्ण है, कम-से-कम वे अधिक अलकन नहीं हैं, किन्तु वाग्भट ने अपने वर्णनो मे बहुत दूर की कौडी फैकी है । कतिपय उदाहरण अप्रामगिक न होंगे। भोर के समय चन्द्रमा की आभा मन्द पड़ जाती है, कुमुदिनी मुरझा जाती है किन्तु चकवे यानन्दविमोर हो उठते हैं। कीतिराज ने इस प्रात • कालीन दृश्य का नीघा-यादा वर्णन किया है, किन्तु वाग्भट की कल्पना है कि चाँद ने रात-भर कुमुदो के पात्रो मे मदिरा-पान किया है जिससे वह नशे मे चूर हो गया है और बेहोशी मे नगा होकर घडाम से अस्ताचल पर गिर पडा है । मन्ये मधूनि निशि करवपात्रे पीतानि शोतरुचिना करनालयन्त्र । नो चेत्कय पति निर्गलिताशुकोऽय को सहर्षनिनदरिव हस्यमान ।।(ने नि.३६४) नवोदित सूर्य की किरणें कुमुदिनियो पर फैली हुई ऐसी प्रतीत होती हैं मानो प्राणप्रिय चन्द्रमा के विछोह की वेदना से फटे उनके हृदय से बहती सविर की बाराएं हो ।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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