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________________ नेमिनाथमहाकाव्य । अष्टम सर्ग में प्रयुक्त छन्दो की सख्या ग्यारह है । उनके नाम इस प्रकार हैंद्र तविलम्बित, इन्द्रवज्रा, विभावरी, उपजाति (वशस्थ+इन्द्रवशा), स्वागता, वैतालीय, नन्दिनी, तरेटक, शालिनी, स्रग्धरा तथा औपच्छन्दसिक । इस सर्ग . मे नाना छन्दो का प्रयोग ऋतु-परिवर्तन से उदित विविध भावो को व्यक्त करने में पूर्णतया सक्षम है । वारहवें सर्ग मे भी ग्यारह छन्द प्रयोग मे लाये गये हैं। वे इस प्रकार हैं-नन्दिनी, उपजाति (इन्द्रवशा+वशस्थ), उपजाति (इन्द्रवज्रा+उपेन्द्रवज्रा), रथोद्धता, वियोगिनी, द्रुतविलम्बित, उपेन्द्रवज्रा, अनुष्टुप्, मालिनी, मन्दाक्रान्ता तथा आर्या । दसवे सर्ग की रचना मे जिन चार छन्दो का याश्रय लिया गया है, वे इस प्रकार हैं-उपजाति (इन्द्रवज्रा+उपेन्द्रवज्रा), शार्दूलविक्रीडित, इन्द्रवजा तथा उपेन्द्रवज्ञा। सब मिलाकर नेमिनाथमहाकाव्य मे २५ छन्द प्रयुक्त हुए हैं । इनमे उपजाति का प्रयोग सबसे अधिक है। नेमिनाथमहाकाव्य की रचना कालिदास की परम्परा मे हुई है। धार्मिक कथानक चुनकर भी कीतिराज अपनी कवित्व शक्ति, सुरुचि तथा सन्तुलित दृष्टिकोण के कारण माहित्य को एक ऐसा रोचक महाकाव्य दे सके है, जिसकी गणना सस्कृत के उत्तम काव्यो मे की जा सकती है। नेमिनाथमहाकाव्य और नेमिनिर्वाण जैन साहित्य मे तीर्थंकर नेमिनाथ के जीवनवृत्त के दो मुख्य स्रोत हैजिनसेन प्रथम का हरिवशपुराण (७८३ ई०) तथा गुणभद्र का उत्तर-पुराण (८६७ ई०) । इन उपजीव्य ग्रन्यो मे नेमिचरित की प्रमुख रेखाओ के आधार पर,भिन्न-भिन्न शैली मे,उनके जीवन-चित्र का निर्माण किया गया है । हरिवश पुराण में यह प्रकरण बहुत विस्तृत है । जिनसेन ने नौ विशाल सों मे जिनेन्द्र के सम्पूर्ण चरित का मनोयोगपूर्वक निरूपण किया है । कवि की धीर-गम्भीर शैली, अलकृत एवं प्रौढ भाषा तथा समर्थ कल्पना के कारण यह पौराणिक प्रसग महाकाव्य का आभाम देता है और उसकी भांति तीन रमवत्ता का आस्वादन कराता है। उत्तरपुराण मे नेमिचरित का सरसरा-सा वर्णन है ।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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