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________________ [ नेमिनाथमहाकाव्य उसके माये पर तेवड पड़ जाते हैं, भौहे साँप-सी भीषण हो जाती हैं, आखें भाग बरसाने लगती है और दान्त किटकिटा उठते है । ललाटपट्ट भ्रकुटोभयानक नवी भुजगाविव दारुणाकृती । दृश कराला ज्वलिताग्निकुण्डवचण्डार्यमाम मुखमादधेऽसौ ॥ ददश दन्तै रुपया हरिनिजी रसेन शच्या अघराविवाघरी। प्रस्फोरयामास फरावितस्तत क्रोधद्र मस्योस्चरापल्लाविव ॥१३-४ प्रतीकात्मक सम्राट मोह के दूत तथा सयमराज के नीति निपुण मन्त्री विवेक की उक्तियो के अन्तर्गत, ग्यारहवे सर्ग मे, वीर रस की कमनीय झांकी देखने को मिलती है। यदि शक्तिरिहास्ति ते प्रभा प्रतिगृह्णातु तवा तु तान्यपि । परमेष विलोलजिह्वया कपटी भापयते जगज्जनम् ।।१११४४ मन्त्री विवेक का उत्साह यहाँ स्थायी भाव के रूप में वर्तमान है । मोहराज आलम्बन है । उसके दून की कटुक्तियाँ उद्दीपन का काम करती हैं। मन्त्री का विपक्ष को चुनौती देना तथा मोह की वाचालता का मजाक उडाना मनुभाव है । घृति, गर्व, तर्क आदि मचारी भाव है । इस प्रकार यहां वीर रस के समूचे उपकरण विद्यमान हैं। अन्य अधिकाश जैन काव्यों की भाति नेमिनाथमहाकाव्य का पर्यवसान शान्त रस में हुआ है । शान्त रस का आधारभूत तत्त्व(स्थायी भाव)निर्वेद है, जो काव्य-नायक के जीवन मे आद्यन्त अनुस्यूत है । और अन्तत वे केवल शान के सोपान से ही परम पद की अट्टालिका में प्रवेश करते हैं। वधू-गृह के ग्लानिपूर्ण हिंमक दृश्य को देखकर तथा कृष्ण-पत्लियो की कामुकतापूर्ण युक्तियों को सुनकर उनकी वैगग्यशीलता का प्रवल होना स्वाभाविक था। इन सभी प्रमङ्गो मे गान्त रत्त की यथेष्ट अभिव्यक्ति हुई है । नेमिप्रभु की देशना का प्रस्तुत अश मनुष्य को विषय-आफपंणो तथा सम्बन्धो की अणिकता का भान कराकर उने मोक्ष की ओर उन्मुख करता है।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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