SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ ] [ नेमिनायमहाकाव्य को व्यक्त किया गया है, दूसरी ओर उनकी वशीकरण-क्षमता का मकेत कर दिया गया है । वभावुरुयुग यस्या. कदलीम्तम्भकोमलम् । आलान इव दुर्दन्त-मोनकेतन-हस्तिन. १६.५५ नेमिनाथमहाकाव्य मे उपमान की अपेक्षा उपमेय अङ्गो का वैशिष्टय वताकर व्यतिरेक के द्वारा भी पात्रो का सौन्दर्य चित्रित किया गया है ! - नवयौवना राजीमती के लोकोत्तर मुख-सौन्दर्य को कवि ने इसी पद्धति मे सकेतित किया है। उसकी मुख-माधुरी से परास्त होकर लावण्यनिधि चन्द्रमा मुह छिपाने के लिये आकाश मे मारा-मारा फिर रहा है। यस्या बकोण जित शके लाघव प्राप्य चन्द्रमा । तूलवद् वायुनोत्क्षिप्तो बानमोति नभस्तले । ६.५२ रसयोजना परिवर्तनशील मनोरागो का यथातथ्य चित्रण करने मे कीतिराज को पक्षता प्राप्त है । उसकी तूलिका का स्पर्श पाकर मावारण से साधारण प्रसग भी रससिक्त हो उठा है । कवि की. इस क्षमता के कारण धार्मिक वृत्त पर आधारित होता हुआ भी नेमिनाथमहाकाव्य पाठक को तीन रसानुभूति कराता है । शास्त्रीय नियम के अनुरुप इसमे, अगी रस के रूप मे,,शृङ्गार का चित्रण हुआ है । करुण, रोद्र, शान्त आदि का भी ययोचित परिपाक हुआ है। ऋतुवर्णन के अन्तर्गत शृङ्गार के अनेक रमणीक चित्र अङ्कित हुए है। प्रकृति के उद्दीपन रूप से विचलित होकर मदिर मानस प्रेमी युगल कामकेलियो मे खो गये हैं। स्मरपते परहानिय वारिदान् निनदतोऽथ निशम्य विलासिन । समदना न्यपतन्नवकामिनीचरणयो रणयोगविदोऽपि हि ||३७ ।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy