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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] एकादश सर्ग [ १४३ ही सयम की शक्तिशाली सेना रूपी आग मे शलभ बनेगा ॥४६।। मयम के मन्त्री के ऐसा कहने पर शत्रु के दूत ने पुन' यह कहा-है चरित्र ! मुझे लगताहै कि तू और तेरे सारे परिजन मूढ़ हैं ॥४॥ मैंने जो हितकारी बात कही है, उससे तुम्हे क्रोध ही भाया है । अतः यह निम्सन्देह सही है कि मूर्ख को भलाई का उपदेश नहीं देना चाहिये ॥४६॥ वह अग्रगण्य योद्धा राजा मोह कहां और कायरो के शिरोमणि माप कहाँ ? चिन्तु मन्दान्ध व्यक्ति अपने और शत्रु के बलावन का विचार नहीं करता ॥४॥ मित्र ! तुम्हारे स्वामी के सैनिको ने यदि मेरे सैकडो ठिकाने आसानी से तोडे हैं, तो पिता के घर मे बैठे बच्चे की भांति तुम्हारी इसमें क्या वीरता ॥५०॥ मित्र | क्या तुम भूल गये कि पूर्वजन्मो मे मेरे स्वामी ने (माक्रमण के लिये) आये हुए आपको परास्त करके नेमिराज को अपने अधीन किया था ॥५॥ अरे स्मरणाचार्य । तुम्हें याद होगा कि मैंने पहले अपने स्वामी की कृपा से तुम्हें खदेड कर तुम्हारे सैनिको को पीडित किया था ॥५२॥ मूर्ख सयम मेरे बलवान् स्वामी का अनादर करके विनाश को प्राप्त होगा । वन्दर द्वारा सिंह का अपमान निश्चित रूप से उसकी मृत्यु का कारण बनता है ॥५३॥ उसके ये अतीव कठोर वचन सुनकर सयम के कद हुए सैनिकों ने . कुमत को कस कर गले से पकड कर बाहर निकाल दिया ॥५४॥ और उसने (कुमत ने) राजा मोह की सभा मे जाकर शत्रुओ द्वारा किये गये अपने अपमान का विवरण देते हुए परिचनृपति की समूची उत्तम सेना का वर्णन किया ॥५॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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