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________________ १३२] दशम सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् ये कुलीन, हितैषी, शृगार की सारभून, भोली-भाली तथा स्नेहमयी नारियां निरन्तर मगल गा रही हैं । ये मस्त लडके हसी और कौतुको में - व्यस्त हैं । और ये मामन्त राजा उपहार लिये द्वार पर खडे हैं ॥७॥ ये सुन्दर आँखो वाली गणिकाए , जिन्होंने पावो मे मधुर शब्द करने वाली पायजेवे पहन रखी है तथा जिनका खनकते धु धरूओ से स्पष्ट पता चल रहा है, नृत्य मे लीन हैं । ढोल, मर्दल, ताल, बाँसुरी, पणव आदि वाद्य वजाने वाले ये गन्धर्वो के गण, जिनका स्वर किन्नरों के समान मधुर है, (गाने के लिये) आए हैं ॥८॥ अद्भुत विन्याम वाली भूषा को पहन कर उत्कृष्ट शोभा से सम्पन्न और राग-रहित होते हुए भी अनुपम अगराग (वटना) धारण करके जगत्प्रभु नेमिनाथ ने रथ पर सवार होकर विवाह के लिये प्रस्थान किया। उनके साथ चलते राजा ऐसे लगते थे जैसे इन्द्र के सग देवगण | 1180 - यादवो के करोडो कल आनन्दपूर्वक उनके पीछे ऐसे चले जैसे लक्ष्मी पुण्यशाली व्यक्ति का, सुशील स्त्रियां अपने पति का, स्पष्ट टीकाए सूत्र के अर्थ का, तागए चन्द्रमा का, बुद्धि मनुप्य के कर्म का और इन्द्रियो के कार्य हृदय का अनुगमन करते हैं । १० तव अन्य कार्यों से हटकर जिनेश्वर को देखने को अतीव उत्सुक शहर की चपलनयनी नारियो की चेष्टाएं इस प्रकार हुई ॥११॥ - झरोखे की ओर तेजी से जाती हुई किसी स्त्री ने, जिसके पांव ताजे लाक्षारस से रगे थे, मणियो के फर्ग पर अपने चरण-कमलो के चिन्हो से कमलो की भाति पैदा की ।।१२।। कोई दूसरी, जिसके चरण-कमल नूपुरो से शब्दायमान थे, हाथो के गीले प्रसाधन के पुंछने के भय से, गिरे हुए उत्तरीय को वही छोडकर झट खिडकी की तरफ दौट गयी ॥१३॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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