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________________ १२८ ] मयन गर्ग [ नेमिनायगाराम और अच्छे गुम माता-पिता में गुप के लिये ही या करते हैं। बाद (अपने पिता ) सागर को प्रसन्नता के लिए मा बादश में भूगता है ॥३४॥ ससार में निम्म्पृह महात्मा दया के बीभूत र मगे पर अनुग्रह करने की इच्छा से ही कार्य करते हैं ॥३॥ जैसे चन्द्रमा गमूचे गगार को प्रसन्न करता हुआ नो समुदो को, आत्मीय समझ कर, अधिक आनन्दित करता है, है विप्या ! उसी प्रकार जगन् । को आह्लादित करने वाले तुम्हे भी अपने कुटुम्ब पो विशेष रूप में प्रसन्न , फरना चाहिये ॥३६-३७॥ ___ अथवा हम अधिक क्या कहे । आप स्वय निकाला है। भगवान ही . इहलोक और परलोक की स्थिति को जानते है ॥३८॥ इसी बीच शिवा ने पास आकर और प्रभु को बोह में पफट कर कहा-कुमार | मैं तुम्हारी आंखो पर वलि जाती हूं ॥३६॥ पुत्र । प्रसन्न हो और तुरन्त विवाह म्बीकार कर । है गरी माता-पिता की इच्छाओ को अवश्य पूरा करना चाहिये ॥४०॥ तव जगत् के स्वामी ने, निस्पृह होते हुए भी, माता-पिता के आग्रह से उनकी बात मान ली क्योकि उनकी आज्ञा का उल्लघन नही किया जा सकता ॥४॥ तब मारे यादव, विशेषत शिवादेवी और समुद्रविजय, बन्धुओ समेत प्रसन्न हो उठे ।।४।। और इधर कमल के समान मासो वाला राजा उपसेन था। वह भोजराज का पुत्र था और उसकी सेना उम्र थी ॥४३॥ वह पराक्रमी रणभूमि मे शत्रुओं के प्रताप और यश को ऐसे ग्रस लेता था जैसे उच्च स्थान मे स्थित राहु चन्द्रमा और सूर्य को ॥४४॥ प्रतिपक्षी राजा, हाथ मे तलवार लेकर युद्ध के लिये तैयार उसे प्रसन्न करके, यह सूचित करने के लिये कि हम लउने से अनभिज्ञ है, उसे ' तलवारें भेंट करते थे ॥४५॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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